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    52.5 प्रतिशत कृषि परिवार कर्ज में दबा , मोदी सरकार से 2022 तक किसानों की आय दुगनी करना असंभव ,

    .प्रतीकात्मक तस्वीर(by google)



    राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की रिपोर्ट के मुताबिक एक कृषि परिवार की मासिक औसत कमाई 8,931 रुपये है. देश के आधे से ज़्यादा कृषि परिवार क़र्ज़ के दायरे में हैं और हर एक व्यक्ति पर औसतन एक लाख से ज़्यादा का क़र्ज़ है

    नई दिल्ली :- हाल ही में 16 अगस्त को नाबार्ड ने अपनी अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण (एनएएफआईएस) रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के आधे से ज़्यादा कृषि परिवार कर्ज के दायरे में हैं और हर एक व्यक्ति पर औसतन एक लाख से ज़्यादा का कर्ज है. नाबार्ड ने इस रिपोर्ट को 2015-16 के दौरान 245 जिलों के 2016 गांवों के 40,327 परिवारों के बीच सर्वे करके तैयार किया है.

    52.5 प्रतिशत कृषि परिवार कर्ज में दबा (52.5% of agricultural family suppressed in debt) :-

    बता दें कि एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक 2012-13 में एक कृषि परिवार की औसत मासिक आय 6,426 रुपये थी. इस हिसाब से पिछले तीन साल में 2,505 रुपये प्रति महीने की वृद्धि हुई है, जो लगभग 39 प्रतिशत की बढ़ोतरी है.नाबार्ड रिपोर्ट के मुताबिक 52.5 प्रतिशत कृषि परिवार कर्ज में हैं. एक परिवार पर औसतन 1,04,602 रुपये का कर्ज है. वहीं 42.8 प्रतिशत गैर-कृषि ग्रामीण परिवार कर्ज में हैं. इनके ऊपर औसतन 76,731 रुपये का कर्ज है.इनमें से 59 प्रतिशत परिवारों ने संस्थागत (बैंक, सहकारी संस्था वगैरह से लिया गया) माध्यमों से कर्ज लिया गया. वहीं 32 प्रतिशत परिवारों का कर्ज गैर-संस्थागत (जैसे कि साहुकार आदि से) माध्यमों से लिया गया है. वहीं नौ प्रतिशत परिवारों ने संस्थागत और गैर संस्थागत दोनों तरीकों से कर्ज लिया था.पिछले एक साल में एक परिवार ने संस्थागत स्रोतों से औसतन 28,207 का लोन लिया. वहीं औसतन 63,645 रुपये का लोन गैर-संस्थागत जगहों से लिया गया. कुल मिलाकर पिछले एक साल में एक परिवार ने औसतन 91,852 रुपये का कर्ज लिया. कर्ज लेने वाले परिवारों में से 32 प्रतिशत के पास किसान क्रेडिट कार्ड था.

    औसत आय के मामले राज्यों की स्थिति (Status of states of average income) :-

    ग्रामीण परिवारों के औसत आय के मामले में पंजाब (16,020) सबसे आगे है तो दूसरे नंबर पर केरल (15130) और तीसरे स्थान पर हरियाणा (12072) है। वहीं, इस मामले में अंतिम पायदन पर खड़े तीन राज्य उत्तर प्रदेश (6,257), झारखंड (5854) और आंध्र प्रदेश (5842) हैं।

    तीन साल में 17 प्रतिशत घटी किसानों की खेती से कमाई, 10 प्रतिशत कम हुए कृषि परिवार (Farmers' farming earning 17 percent fall in three years, 10 percent reduction in farm family) :-

    नाबार्ड की इस रिपोर्ट के बताया गया है कि ग्रामीण भारत में 48 प्रतिशत परिवार ही कृषि परिवार हैं. इसके अलावा गांव के अन्य परिवार गैर-कृषि स्रोतों पर निर्भर हैं. गौरतलब है कि इससे पहले 2014 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा इसी तरह की रिपोर्ट जारी की गई थी. जिसकेे मुताबिक साल 2012-13 में ग्रामीण भारत में 57.8 प्रतिशत कृषि परिवार थे.इस हिसाब से तीन साल में लगभग 10 प्रतिशत कृषि परिवार घट गए. सबसे ज़्यादा मेघालय (78 प्रतिशत) में कृषि परिवार हैं. इसके बाद मिजोरम (77 प्रतिशत), जम्मू (77 प्रतिशत), हिमाचल प्रदेश (70 प्रतिशत) और अरुणाचल प्रदेश (68 प्रतिशत) कृषि परिवार हैं. सबसे कम गोवा (3 प्रतिशत), तमिलनाडु (13 प्रतिशत) और केरल (13प्रतिशत) में कृषि परिवार हैं.वहीं, इस रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि कृषि परिवारों की कमाई का सिर्फ 43 प्रतिशत हिस्सा खेती और पशुधन पालन से आता है. अगर हम कुल ग्रामीण परिवारों की कमाई देखें तो उनकी खेती पर निर्भरता घट रही है.

    कुल ग्रामीण परिवारों की आय का सिर्फ 23 प्रतिशत
    हिस्सा खेती और पशुपालन से आता है (Only 23 percent of the income of the total rural households comes from farming and animal husbandry) :-

    बता दें कि मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात कही है. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अप्रैल 2016 में अशोक दलवाई कमेटी का गठन किया गया था. कमेटी ने बताया कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए 2022-23 तक किसानों की आय का 69 से 80 प्रतिशत खेती और पशुपालन से प्राप्त होगा.हालांकि नाबार्ड कि ये रिपोर्ट बताती है कि खेती और पशुपालन के जरिए कमाई में भारी कमी आई है. एनएसएसओ की पिछली रिपोर्ट के मुताबिक साल 2012-13 में कृषि परिवार की कमाई का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा कृषि व्यवसाय (कृषि/पशुपालन) से था जबकि लगभग 32 प्रतिशत कमाई मजदूरी/रोजगार वेतन से होता था.मौजूदा सर्वे के मुताबिक खेती से ज़्यादा ग्रामीणों की कमाई का 43 प्रतिशत हिस्सा दिहाड़ी मजदूरी से आता है. यहां तक कि कृषि परिवार की भी 34 प्रतिशत कमाई दिहाड़ी मजदूरी से होती है. वहीं ग्रामीणों की कमाई का 24 प्रतिशत हिस्सा सरकारी या निजी नौकरी के जरिए आता है.कृषि के लिए इंफोसिस चेयर प्रोफेसर अशोक गुलाटी कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लक्ष्य है कि 2022-23 तक किसानों की आय दोगुनी की जाएगी. इसके लिए दलवाई कमेटी ने आकलन किया है कि किसानों की वास्तविक आय 10.4 प्रतिशत प्रति वर्ष के हिसाब से बढ़नी चाहिए, जो कि अब तक के सबसे ज़्यादा वृद्धि दर (3.7 प्रतिशत) का 2.8 गुना है.उन्होंने आगे कहा, ‘ये उसी तरह की बात है कि देश की जीडीपी वृद्धि दर को 7.2 प्रतिशत से लेकर 20 प्रतिशत तक पहुंचाना है. क्या ये संभव हो पाएगा? पिछले तीन से चार साल में सरकार जिस तरह की कृषि योजनाएं लेकर आई है और उसे जिस तरह लागू किया गया है, इसे देखकर लगता है कि किसानों की आय 2025 तक भी दोगुनी नहीं हो सकती है.’

    8,931 रुपये है एक कृषि परिवार की मासिक कमाई (8,931 is the monthly income of an agricultural family) :-

    इस रिपोर्ट में बताया गया है कि एक कृषि परिवार की मासिक औसत कमाई 8,931 रुपये है. वहीं गैर-कृषि परिवार की मासिक कमाई 7,269 रुपये है. एक ग्रामीण परिवार की औसत कमाई 8,059 रुपये है. लगभग 50 प्रतिशत ग्रामीण ही अपनी कमाई से बचत कर पाते हैं.हालांकि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए बनाई गई दलवाई कमेटी ने एनएसएसओ की 2012-13 की रिपोर्ट के आधार पर 2015-16 में कृषि परिवार की आय 8,059 निर्धारित की है, जो कि नाबार्ड के आंकलन के मुकाबले कम है.

    किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी सही से नहीं मिलता (Minimum Support Price (MSP) for farmers is also not met properly) :-

    अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वीएम सिंह कहते हैं कि जब किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी सही से नहीं मिलेगा तो जाहिर है ऐसी स्थिति में खेती से उनकी कमाई कम ही होगी.उन्होंने कहा, ‘एक तरफ तो एमएसपी ही काफी कम है और जितनी भी एमएसपी निर्धारित की जाती है उससे लगभग 20 प्रतिशत कम दाम पर किसानों को अपना अनाज बेचना पड़ता है.’सिंह 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को लेकर आशान्वित नहीं हैं. वे कहते हैं कि मोदी सरकार की जितनी भी फ्लैगशिप योजनाएं हैं, वो सब के सब फ्लॉप हैं. इनसे किसानों का कुछ भी भला नहीं हो रहा है.

    भारत में एक कृषि परिवार के पास औसतन एक हेक्टेयर की कृषि भूमि (Agricultural land of an average of one hectare of an agricultural family in India) :-

    रिपोर्ट के मुताबिक एक कृषि परिवार वो है जिसे कृषि गतिविधियों (जैसे कि फसलों की खेती, बागवानी फसलों, चारा फसलों, वृक्षारोपण, पशुपालन, मुर्गी पालन, मछली पालन, सूअर पालन, मधुमक्खी पालन, कृमि, रेशम के कीड़ों का पालन आदि) से 5,000 रुपये से अधिक का मूल्य प्राप्त होता है और घर का कम से कम एक सदस्य या तो मुख्य रूप से या फिर सहायक के रूप में पिछले 365 दिनों से कृषि में कार्यरत है.भारत में एक कृषि परिवार के पास औसतन एक हेक्टेयर की कृषि भूमि है. सबसे ज़्यादा 31 प्रतिशत लोगों के पास 0.01 से 0.4 हेक्टेयर की कृषि भूमि है. वहीं, 30 प्रतिशत लोगों के पास 0.41 से 1.0 हेक्टेयर तक की जमीन है. सिर्फ 13 प्रतिशत लोगों के पास दो हेक्टेयर से ज़्यादा की भूमि है.बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू, झारखंड, मेघालय, ओडिशा, सिक्किम, यूपी, त्रिपुरा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कृषि परिवार की औसत जमीन एक हेक्टेयर से भी कम है.

    संसाधनों की कमी (Lack of resources) :-

    रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 5.2 प्रतिशत कृषि परिवारों के पास ट्रैक्टर है, 1.8 प्रतिशत लोगों के पास पावर टिलर है, 0.8 प्रतिशत लोगों के पास स्प्रिंकलर है, 1.6 लोगों के पास ड्रिप सिंचाई सिस्टम है और 0.2 प्रतिशत लोगों के पास हार्वेस्टर है.साल 2015-16 में 53.8 प्रतिशत कृषि परिवार को अत्यधिक, बहुत कम या असाधारण वर्षा के कारण फसल नुकसान को झेलना पड़ा था. वहीं 27.6 प्रतिशत परिवार को कीट प्रकोप की वजह से फसलों की उत्पादकता में अचानक गिरावट देखना पड़ा था.इसी तरह 18.2 प्रतिशत परिवारों को बाजार मूल्यों में अचानक गिरावट की वजह से नुकसान झेलना पड़ा.कृषि परिवारों की कमाई 8,059 रुपये है और इनका खर्च 6,646 रुपये है. इस तरह वे 1,413 रुपये बचा पाते हैं. हालांकि इसमें सिर्फ घर का खर्च शामिल किया जाता है. आवासीय भूमि और भवन के खरीद और निर्माण पर व्यय, ब्याज भुगतान, बीमा प्रीमियम भुगतान इत्यादि इसमें शामिल नहीं किया गया है.किसानों की कमाई का 51 प्रतिशत हिस्सा खाने पर खर्च होता है.

    रिपोर्ट की कुछ अन्य ज़रूरी बातें (Some other important things in the report) :-
    1. सिर्फ 25 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में से किसी एक शख्स का बीमा हो रखा है. वहीं, सिर्फ 18.9 प्रतिशत ग्रामीण परिवार के किसी एक शख्स को सर्वे के समय पेंशन मिल रहा था ,
    2. आधी से कम ग्रामीण आबादी को वित्तीय शिक्षा की जानकारी है ,
    3. 23.6 प्रतिशत लोगों ने पिछले तीन महीने में कम से कम एक बार एटीएम इस्तेमाल किया था ,
    4. तीन महीनों में कम से कम एक बार 7.5 प्रतिशत लोगों ने पेमेंट करने के लिए चेक का इस्तेमाल किया था ,
    5. 7.4 प्रतिशत लोगों ने पेमेंट के लिए डेबिट/क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल किया और सिर्फ 1.6 प्रतिशत लोगों ने मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल किया ,
    6. इस सर्वेक्षण में देश के 29 राज्यों के 40,327 कृषि और कृषितर ग्रामीण परिवारों के 1.88 लाख व्यक्तियों को शामिल किया गया ,
    7. यह एक राष्ट्रीय स्तर का सर्वेक्षण है जो कि ग्रामीण आबादी की स्थिति, उनकी आजीविका के स्रोत, आय सहित परिवारों की आर्थिक स्थिति, व्यय और घरेलू संपत्ति के संदर्भ में एक व्यापक तस्वीर पेश करता है ,
    8. रिपोर्ट में भी बात सामने आई है कि कृषि परिवार सबसे ज़्यादा अनपढ़ हैं ,
    9. 89.1 प्रतिशत कृषि परिवार के पास मोबाइल फोन है और 55.7 प्रतिशत लोगों के पास टेलीविजन है ,
    10. कृषि परिवार ज़्यादातर दो स्रोत के जरिए कमाई पर निर्भर हैं. कृषि क्षेत्र के 12.7 प्रतिशत लोग एक स्रोत के जरिए कमाई पर निर्भर हैं , एक स्रोत से किसान सिर्फ 5,324 रुपये ही कमा पाते हैं ,
    11. ध्यान देने वाली बात ये है कि सबसे ज़्यादा किसानों के पास 0.01- 0.40 हेक्टेयर की जमीन है और इनकी 30.2 प्रतिशत की कमाई खेती और पशुपालन के जरिए होती है, वहीं 44.1 प्रतिशत की कमाई ये लोग दिहाड़ी मजदूरी से करते हैं. इस तरह किसान खेती से ज़्यादा दिहाड़ी मजदूरी से कमाई कर रहे हैं ,
    12. सबसे कम कमाई आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और झारखंड के किसानों की है ,

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