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    पीएम मोदी के ब्लॉग से बेटे-बेटियों के लिए टिकट मांग रहे नेताओं में टेंशन



    भोपाल ,नई दिल्ली march 20/2019
    पीएम मोदी का पूरा ब्लॉग
    वह 2014 की गर्मियों के दिन थे, जब देशवासियों ने निर्णायक रूप से मत देकर अपना फैसला सुनाया:
    परिवारतंत्र को नहीं, लोकतंत्र को चुना।
    विनाश को नहीं, विकास को चुना।
    शिथिलता को नहीं, सुरक्षा को चुना।
    अवरोध को नहीं, अवसर को प्राथमिकता दी। 
    वोट बैंक की राजनीति के ऊपर विकास की राजनीति को रखा।
    2014 में देशवासी इस बात से बेहद दुखी थे कि हम सबका प्यारा भारत आखिर फ्रेजाइल फाइव देशों में क्यों है? क्यों किसी सकारात्मक खबर की जगह सिर्फ भ्रष्टाचार, चहेतों को गलत फायदा पहुंचाने और भाई-भतीजावाद जैसी खबरें ही हेडलाइन बनती थीं। तब आम चुनाव में देशवासियों ने भ्रष्टाचार में डूबी उस सरकार से मुक्ति पाने और एक बेहतर भविष्य के लिए मतदान किया था। वर्ष 2014 का जनादेश ऐतिहासिक था। भारत के इतिहास में पहली बार किसी गैर वंशवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था। 
    जब कोई सरकार ‘Family First’ की बजाए ‘India First’ की भावना के साथ चलती है तो यह उसके काम में भी दिखाई देता है।  यह हमारी सरकार की नीतियों और कामकाज का ही असर है कि बीते पांच वर्षों में, भारत दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया है। हमारी सरकार के दृढ़संकल्प का ही नतीजा है कि आज भारत ने सेनिटेशन कवरेज में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। 2014 में जहां स्वच्छता का दायरा महज 38% था, वो आज बढ़कर 98% हो गया है। हमारी सरकार के प्रयासों से ही हर गरीब का आज बैंक में खाता है। जरूरतमंदों को बिना बैंक गारंटी के लोन मिले हैं। भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया गया है। बेघरों को घर उपलब्ध कराए गए हैं। गरीबों को मुफ्त चिकित्सा की सुविधा मिली है और युवाओं को बेहतर शिक्षा और रोजगार के अवसर मिले हैं।आज हर क्षेत्र में हुए इस बुनियादी परिवर्तन का अर्थ यह है कि देश में एक ऐसी सरकार है, जिसके लिए देश की संस्थाएं सर्वोपरि हैं। भारत ने देखा है कि जब भी वंशवादी राजनीति हावी हुई तो उसने देश की संस्थाओं को कमजोर करने का काम किया।

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     पीएम मोदी के ब्लॉग से बेटे-बेटियों के लिए टिकट मांग रहे नेताओं में टेंशन 

    लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी के ब्लॉग ने बेटे-बेटियों के लिए टिकट मांग रहे नेताओं को टेंशन में डाल दिया है। मोदी ने बुधवार को ब्लॉग करके कांग्रेस पर  निशाना साधते हुए लिखा है कि वंशवाद की राजनीति से सबसे अधिक नुकसान संस्थाओं को हुआ है। प्रेस से पार्लियामेंट तक, सोल्जर्स से लेकर फ्री स्पीच तक, ,कॉन्स्टिट्यूशन से लेकर कोर्ट तक, कुछ भी नहीं छोड़ा। 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ कि गैर वंशवादी पार्टी को पूर्व बहुमत मिला था। देशवासियों ने भ्रष्टाचार में डूबी उस सरकार से मुक्ति पाने और एक बेहतर भविष्य के लिए मतदान किया था। जब कोई सरकार ‘Family First’ की बजाए ‘India First’ की भावना के साथ चलती है तो यह उसके काम में भी दिखाई देता है। आज हर क्षेत्र में हुए इस बुनियादी परिवर्तन का अर्थ यह है कि देश में एक ऐसी सरकार है, जिसके लिए देश की संस्थाएं सर्वोपरि हैं। भारत ने देखा है कि जब भी वंशवादी राजनीति हावी हुई तो उसने देश की संस्थाओं को कमजोर करने का काम किया।
                   मोदी के ब्लॉग ने अब नेताओं के बेटे-बेटियों की दावेदारी पर संकट पैदा कर दिया है। मोदी के इस ब्लॉग से साफ है कि बीजेपी इस बार परिवारवाद को बढ़ावा नही देगी और ना ही नेताओं के बेटे बेटियों को टिकट दिया जाएगा। इससे सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश के नेताओ को झटका लगा है। चुंकी मध्यप्रदेश के कई नेता अपने बेटे-बेटियों की टिकट की मांग किए हुए है। भाजपा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव लंबे समय से अपने पुत्र अभिषेक भार्गव के लिए टिकट की मांग कर रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भी अभिषेक ने सागर लोकसभा से टिकट की मांग की थी, लेकिन तब भार्गव सरकार में मंत्री थे, लिहाजा अभिषेक को टिकट नहीं मिला। अब भार्गव मप्र विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष हैं, ऐसे में उनके बेटे को टिकट मिलने की संभावनाओं पर इस बार भी पानी फिर सकता है। वही भाजपा विधायक एवं पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन भी अपने बेटी मौसम को बालाघाट से लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहते हैं। पिछले चुनाव में भी उन्होंने मौसम को लोकसभा चुनाव उतारने की भरसक कोशिश की, लेकिन पार्टी ने बोध सिंह भगत को बालाघाट से चुनाव मैदान में उतारा। बोध सिंह और बिसेन के बीच हमेशा विवाद की स्थिति बनी रहती है। सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी देानों नेता एक-दूसरे के खिलाफ बांहेंतान चुके हैं। बिसेन भाजपा विधायक हैं और उनकी पत्नी रेखा बिसेन बालाघाट जिला पंचायत की अध्यक्ष हैं, ऐसे में उनकी बेटी मौसम बिसेन को इस बार टिकट मिलना भी मुश्किल हैं। 
    इसके अलावा पूर्व वित्तमंत्री राघव जी अपनी बेटी के लिए , शिवराज सिंह की पत्नी साधना, नरोत्तम के बेटे सुकर्ण, विजय शाह के रिश्तेदार, भूपेंद्र सिंह की पत्नी सरोज, हरिशंकर खटीक की पत्नी बिंदेश्वरी और सत्यनारायण जटिया के बेटे राजकुमार भी इस दौड़ में शामिल है। हालांकि अंतिम फैसला पार्टी को ही करना है। हालांकि प्रदेश चुनाव समिति में शामिल हुए राष्ट्रीय महासचिव अनिल जैन, प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे और प्रदेश अध्यक्ष ने साफ कहा है कि इस बारे में निर्णय केंद्रीय नेतृत्व करेगा। हारे हुए मंत्री अथवा विधायक को टिकट देना है या नहीं, इसका निर्णय भी दिल्ली करेगी।लेकिन पीएम मोदी ने जिस तरह से ब्लॉग पर वंशवाद और परिवारवाद की बात कही है उससे ऐसा लग रहा है कि बीजेपी इस बार नई चेहरों को मौका दे सकती है।


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