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    क्या कर्जमाफी से किसानों की मुश्किलें खत्म होंगीं ?



    • क्या कर्जमाफी से किसानों की मुश्किलें खत्म होंगीं

    सिर तक कर्ज में डूबा किसान सरकार से कर्ज माफी से लेकर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए आंदोलन कर रहा है. सरकार को किसानों का कर्ज माफ करने में क्या मुश्किल है. क्या कर्जमाफी से किसानों की मुश्किलें खत्म हो जाएंगी?
    मध्य प्रदेश सहित देश के 7 राज्यों के किसान कर्ज माफी को लेकर सड़क पर हैं. दरअसल इसकी शुरुआत पिछले साल उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की नई सरकार द्वारा 36 हजार करोड़ की कर्जमाफी के फैसले के बाद से हुई. पिछले साल मंदसौर में किसान कर्जमाफी को लेकर आंदोलन कर रहे थे, 6 जून को एमपी पुलिस की गोली से पांच किसानों की मौत के बाद गुस्सा और भड़क गया और इसमें राजनीतिक दल भी कूद पड़े.

    किसानों की मांग है कि जब यूपी सरकार किसानों को कर्जमुक्त कर सकती है तो बीजेपी शासित मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सरकारें क्यों नहीं? खासतौर पर जिन राज्यों में कर्ज माफी को लेकर मांग उठी है पहले वहां के कर्ज का हिसाब जान लीजिए.


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    किन राज्यों में कितना कर्ज ?


    राजस्थान में 85 लाख किसान परिवार हैं जिन पर 82 हजार करोड़ का कर्ज है. हरियाणा में 15.5 लाख किसानों पर 56 हजार करोड़ का कर्ज हैं. महाराष्ट्र में 31 लाख किसानों पर 30 हजार करोड़ का कर्ज है. मध्य प्रदेश में किसानों पर 74 हजार करोड़ की देनदारी है जबकि यूपी के किसानों पर करीब 86 हजार करोड़ बकाया है. यानी सिर्फ इन 5 राज्यों में ही 3 लाख 28 हजार करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है. सवाल उठता है कि किसानों की कर्जमाफी में आखिर परेशानी क्या है? और उससे भी बड़ा सवाल आखिर 3 लाख 28 हजार करोड़ रुपये आएंगे कहां से?

    किसान आंदोलन का साल



    2018 किसान आंदोलनों और संघर्ष का साल रहा है. साल के शुरु होते ही फरवरी में दिल्ली, हरियाणा में प्रदर्शन और घेराव हुए. वहीं मार्च में 40 हजार किसानों ने अपनी मांगों को लेकर महाराष्ट्र के नासिक से मुंबई तक पैदल मार्च किया था. इसके बाद मार्च के महीने में हजारों किसानों ने दिल्ली में प्रदर्शन किया था. इसके बाद देश के 7 राज्यों में किसान सड़क पर था ।

    13 साल से क्यों अधर में स्वामीनाथ की सिफारिश


    किसान अपने फसल का वाजिब हक मांग रहा है, कर्ज में डूबा हुआ है, आत्महत्या कर रहा है. देश में किसानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है. लेकिन सरकारें चैन की नींद सो रही हैं. 13 साल पहले स्वामीनाथन आयोग ने देश में किसानों की हालत सुधारने के लिए कई बड़े कदमों की सिफारिश की थी. तब यूपीए सरकार और पिछले 4 साल से मोदी सरकार ने किसानों की हालत में सुधार की दिशा में क्या ठोस कदम उठाए हैं या कर्जमाफी से आगे सरकारों की गाड़ी आगे बढ़ ही नहीं पा रही है. आखिर क्या चुनौतियां हैं इस देश में अन्नदाता की जिसके कारण हर बार उन्हें सड़कों पर उतरकर अपनी आवाज बुलंद करनी पड़ रही है.

    कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में अन्न की आपूर्ति को भरोसेमंद बनाने और किसानों की आर्थिक हालत को बेहतर करने के मकसद को लेकर 2004 में केंद्र सरकार ने एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया. इसे स्वामीनाथन रिपोर्ट कहा जाता है. इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 4 अक्टूबर, 2006 में सौंपी गई लेकिन इस रिपोर्ट में जो सिफारिशें हैं उन्हें अभी तक लागू नहीं किया जा सका है.

    स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें



    • फसल उत्पादन मूल्य से पचास प्रतिशत ज़्यादा दाम किसानों को मिले.
    • किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज कम दामों में मुहैया कराए जाएं.
    • गांवों में किसानों की मदद के लिए विलेज नॉलेज सेंटर या ज्ञान चौपाल बनाया जाए.
    • महिला किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए जाएं.
    • किसानों के लिए कृषि जोखिम फंड बनाया जाए, ताकि प्राकृतिक आपदाओं के आने पर किसानों को मदद मिल सके.
    • सरप्लस और इस्तेमाल नहीं हो रही ज़मीन के टुकड़ों का वितरण किया जाए.
    • खेतीहर जमीन और वनभूमि को गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए कॉरपोरेट को न दिया जाए.
    • फसल बीमा की सुविधा पूरे देश में हर फसल के लिए मिले.
    • खेती के लिए कर्ज की व्यवस्था हर गरीब और जरूरतमंद तक पहुंचे.
    • सरकार की मदद से किसानों को दिए जाने वाले कर्ज पर ब्याज दर कम करके चार फीसदी किया जाए.
    • कर्ज की वसूली में राहत, प्राकृतिक आपदा या संकट से जूझ रहे इलाकों में ब्याज से राहत हालात सामान्य होने तक जारी रहे.
    • लगातार प्राकृतिक आपदाओं की सूरत में किसान को मदद पहुंचाने के लिए एक एग्रिकल्चर रिस्क फंड का गठन किया जाए.
    • 28 फीसदी भारतीय परिवार ग़रीब रेखा से नीचे रह रहे हैं. ऐसे लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा का इंतज़ाम करने की सिफारिश आयोग ने की.

    यूपीए ने की बैंक के कर्ज पर कर्जमाफी


    यूपीए सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की बजाय किसानों की कर्जमाफी का ऐलान कर दिया. फरवरी 2008 में चुनाव से पहले यूपीए सरकार ने किसानों की ऋण माफ करने की नीति का ऐलान किया. इस स्कीम के तहत किसानों के 70 हजार करोड़ रुपये के ऋण माफ किए जाने थे. इस स्कीम का फायदा उन किसानों के लिए था, जिन्होंने बैंकों से खेती के लिए ऋण लिए थे. कांग्रेस का दावा है कि इससे साढे तीन करोड़ किसानों का कर्ज माफ हुआ लेकिन 10 साल हो जाने के बावजूद किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ.

    मोदी ने 2014 में किए थे वादे


    यूपीए सरकार गई तो मोदी सरकार ने किसानों के लिए कई नारे गढ़े. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने किसानों से वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनी तो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करेंगे. इसके अलावा किसानों को फसल लागत मूल्य से 50 प्रतिशत अधिक मुनाफा मिलेगा. नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए और उनकी सरकार के चार साल पूरे चुके हैं. अब पीएम मोदी अपनी सभाओं में अक्सर साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात करते हैं, लेकिन किसानों से जो वादे किए गए थे वो अभी तक पूरे नहीं हो सके?

    किसान दोनों ओर से पिस रहा


    दरअसल देश में ज्यादातर किसानों की आय राष्ट्रीय औसत से कम है, उनको अगर उपज का भी सही मूल्य नहीं मिलेगा तो वे कैसे बचेंगे. आज किसान कम उत्पादन करने पर भी मरते हैं और अधिक उत्पादन करने पर भी. केंद्र सरकार या राज्य सरकारें दावा कुछ भी करे लेकिन हकीकत यही है कि देश का किसान आज सड़क पर संघर्ष करने को मजबूर है. केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह के पास एक ही जवाब होता है कि सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए सभी संभव प्रयास कर रही है.

      

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