जानें कैसे कर सकते हैं गन्ने के हानिकारक कीटों का जैविक नियंत्रण(Learn How can biological control of harmful cane pests lie)
जानें कैसे कर सकते हैं गन्ने के हानिकारक कीटों का जैविक नियंत्रण(Learn How can biological control of harmful cane pests lie)
गन्ने में बिना रासायनों के कीटों का नियंत्रण करने की तकनीक है “जैविक कीट नियंत्रण”
गन्ने के हानिकारक कीटों का जैविक नियंत्रण (Biological control of harmful cane pests)
गन्ने की फसल मे लगने वाले हानिकारक कीटों का नियंत्रण करने के लिए प्रयोगशाला मे परजीवी तैयार किए जाते हैं। यह परजीवी हानिकारक कीट की किसी एक अवस्था (अंडा, लार्वा या प्रौढ़) को खाकर उन हानिकारक कीटों की वृद्धि को कम करते हैं। जैव नियंत्रण प्रयोगशाला द्वारा निम्न लिखित कीटों का नियंत्रण किया जा रहा है।
1. तना भेदक कीट का जैविक नियंत्रण (Biological control of stem penetrating insect) :-
इस कीट का लार्वा गन्ने की पोरियों मे छेद बनाकर उसके अंदर के हिस्से को खाता है और एक पोरी से दूसरी पोरी मे नुकसान करते हुए ऊपर की तरफ बढ़ता है। इससे गन्ने का वजन और उसमें चीनी की मात्रा दोनों कम होते हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए जैविक प्रयोगशाला मे ट्राइकोग्रामा कोलिनस परजीवी के अंडे के ट्राइको कार्ड तैयार किए जाते हैं। जैविक प्रयोगशाला में एक विशेष प्रकार की तितली कोरसाइरा को पालकर उसके अंडों पर यह परजीवी तैयार किए जाते हैं।
इस ट्राइकोकार्ड को 15-20 भागों में बांटकर गन्ने की फसल में अलग अलग स्थानों पर हरी पत्तियों के नीचे चिपकाया जाता है। ट्राइकोकार्ड के ऊपर चिपके हुए अंडों से 24-48 घंटों के बाद परजीवी निकलकर हानिकारक कीट तना भेदक के अंडों के भीतरी भाग को खाते हैं और अंडे के खोल में मादा परजीवी अपने अंडे दे देती है।
यह ट्राइकोकार्ड जुलाई से अक्तूबर तक 6-7 बार गन्ने की फसल में लगाए जाते हैं।
2. चोटी भेदक का जैविक नियंत्रण (Biological control of peak penetrant) :-
चोटी भेदक कीट का लार्वा पत्तियों के मध्यम भाग से होता हुआ गन्ने के ऊपरी भाग में वृद्धि वाले हिस्से को खाता है, जिससे गन्ने की बढ़वार रूक जाती है और मध्य शिखर सूख जाता है। इससे गन्ने की फसल को 25-35% तक हानि हो सकती है। छोटी फसल में किसान इसका नियंत्रण रसायनिक विधि से कर सकते हैं, लेकिन बड़ी फसल में इसका नियंत्रण केवल जैविक विधि से ही किया जा सकता है।
इसके लिए प्रयोगशाला में ट्राइकोग्रामा जैपेनिकम परजीवी के अंडों के ट्राइकोकार्ड तैयार किये जाते हैं। जैविक प्रयोगशाला में एक विशेष प्रकार की तितली कोरसाइरा को पालकर उसके अंडों पर यह परजीवी तैयार किए जाते हैं।
इस ट्राइकोकार्ड को 15-20 भागों में बांटकर गन्ने की फसल में अलग-अलग स्थानों पर हरी पत्तियों के नीचे चिपकाया जाता है। ट्राइकोकार्ड के ऊपर चिपके हुए अंडों से 24-48 घंटों के बाद परजीवी निकलकर हानिकारक कीट चोटी भेदक के अंडों के भीतरी भाग को खाते हैं और अंडे के खोल में मादा परजीवी अपने अंडे दे देती है।
यह ट्राइकोकार्ड जून के अंत से सितंबर तक 6-7 बार गन्ने की फसल में लगाए जाते हैं।
3. पाइरिल्ला का जैविक नियंत्रण (Biological control of pyrilla) :-
पाइरिल्ला के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही गन्ने की हरी पत्तियों का रस चूसते हैं। इससे फसल पीली पड़ जाती है तथा सूखी पत्तियों पर पाइरिल्ला द्वारा छोड़े गए गंद पर फफूंदी लग जाती है जिससे पत्तियाँ काली पड़ जाती हैं। पाइरिल्ला के नियंत्रण के लिए अंडे व शिशु-प्रौढ़ के परजीवी अलग-अलग तैयार किए जाते हैं।
अंडों के परजीवी (Eggs parasites) ,,
पाइरिल्ला के अंडों के परजीवी के लिए पाइरिल्ला टेट्रस्टिक्स परजीवी तैयार किया जाता है। यह परजीवी पाइरिल्ला द्वारा दिये गए अंडों को एकत्रित करके उनको एक स्टिक पर चिपका कर उनके अंडों पर पाइरिल्ला टेट्रस्टिक्स का भोजन करवाकर उसके खोल में परजीवी के अंडे तैयार करवाए जाते हैं। इस प्रकार परजीवी के अंडों की स्टिकों को पाइरिल्ला से प्रभावित गन्ने की फसल में लगा देते हैं।
पाइरिल्ला के शिशु और प्रौढ़ का परजीवी (Pyrilla's Baby and Adult Parasite) ,,
एपिरिकेनिया मिलेनोल्यूयाका पाइरिल्ला के शिशु व प्रौढ़ का परजीवी है जो काले रंग का होता है। गन्ने या ज्वार की फसल में पत्तियों पर सफ़ेद रंग के कोकून होते हैं जिनको इकट्ठा करके प्रयोगशाला में काँच की प्लेटों मे टिशू पेपर लगाकर एकत्रित किया जाता है। कुछ समय बाद इन कोकून में से काले रंग की तितलियाँ निकलती हैं और टिशू पेपर पर अंडे देने लगती हैं। इस प्रकार के अंडों के समूह के पेपर को काट कर गन्ने की फसल मे लगते हैं।
इन अंडों के फूटने पर सफ़ेद रंग का गोल लार्वा निकलता है जो पाइरिल्ला के शिशु व प्रौढ़ के पीछे चिपक कर उसने अपना भोजन बनाता है। पाइरिल्ला को मार कर फिर से यह अपना कोकून तैयार करता है। इस प्रकार यह परजीवी अपना जीवन चक्कर 20-25 दिन में पूरा कर लेता है।
4. जैविक कीट नियंत्रण के लाभ (Benefits of biological pest control) :-
जैविक कीट नियंत्रण से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। गन्ने की फसल व इससे बनने वाले खाद्य पदार्थों पर भी कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है। इस विधि से मित्र कीटों को भी नुकसान नहीं पहुंचता। रसायनिक विधि की अपेक्षा इस विधि में खर्च भी कम आता है।
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