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    शिमला मिर्च की उन्नत व वैज्ञानिक खेती कैसे करें ? पड़े ... (How to do advanced and scientific cultivation of capsicum? Read ...)



    शिमला मिर्च (capsicum) :-
    सब्जियों में शिमला मिर्च की खेती का एक महत्वपूर्ण स्थान है । इसको ग्रीन पेपर, स्वीट पेपर, बेल पेपर इत्यादि विभिन्न नामों से जाना जाता है। आकार तथा तीखापन में यह मिर्च से भिन्न होती है। इसके फल गूदेदार, मांसल, मोटा, घण्टी नुमा, कहीं से उभरा तो कहीं से नीचे दबा हुआ होता है। शिमला मिर्च की लगभग सभी किस्मों में तीखापन अत्यंत कम या नहीं के बराबर पाया जाता है। इसमें मुख्य रूप से विटामिन ए और सी की मात्रा अधिक होती है। इसलिये इसको सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है।

    यदि किसान इसकी खेती उन्नत व वैज्ञानिक तरीके से करे तो अधिक उत्पादन व आय प्राप्त कर सकता है। शिमला मिर्च की खेती कैसे करें की विस्तृत जानकारी के लिए नीचे दिए कुछ बिंदुओ को ध्यान से पड़े ..

    1. उपयुक्त जलवायु (Suitable climate) :-
    यह नर्म आर्द्र जलवायु की फसल है। हमारे देश में जिन क्षेत्रों में शीत ऋतु में तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से अक्सर नीचे नही जाता एवं ठंड का प्रभाव बहुत कम दिनों के लिये रहने के कारण इसकी वर्ष भर फसलें ली जा सकती है। इसकी अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिये 21 से 25 डिग्री सेल्सियस तापक्रम उपयुक्त रहता है। पाला इसके लिये। हानिकारक होता है। ठंडे मौसम में इसके फूल कम लगते है, फल छोटे, कड़े एवं टेढ़े मेढ़े आकार के हो जाते हैं तथा अधिक तापक्रम (33 डिग्री सेल्सियस से अधिक) होने से भी इसके फूल एवं फल झड़ने लगते हैं।

    2. भूमि का चयन (Selection of land) :-
    इसकी खेती के लिये अच्छे जल निकास वाली चिकनी दोमट मिटटी जिसका पी एच मान 6 से 6.5 हो सर्वोत्तम माना जाता है। वहीं बलुई दोमट मिटटी में भी अधिक खाद डालकर और सही समय व उचित सिंचाई प्रबंधन द्वारा खेती कि जा सकती है। भूमि की सतह से नीचे क्यारियों की अपेक्षा इसकी खेती के लिये जमीन की सतह से ऊपर उठी एवं समतल क्यारियां ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है।

    3. उन्नत किस्मे (Advanced Varieties) :-
    शिमला मिर्च की अनेक उन्नत और संकर किस्में है। लेकिन इसके उत्पादक भाइयों को अपने क्षेत्र की प्रचलित तथा अधिक उत्पादन देने वाली के साथ रोग प्रति रोधी किस्मों का चयन करना चाहिए । प्रमुख किस्मों में अर्का गौरव, अर्का मोहिनी, किंग ऑफ नार्थ, कैलिफोर्निया वांडर, अर्का बसंत, ऐश्वर्या, अलंकार, अनुपम, हरी रानी, पूसा दिप्ती, भारत, ग्रीन गोल्ड, हीरा, इंद्रा आदि है।

    4. खाद एवं उर्वरक (Manure and fertilizer) :-
    खेत की तैयारी के समय ही 30-40 टन गोबर की पकी हुई खाद प्रति हेक्टेयर खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। इसके अतिरिक्त 100 की.ग्रा. नाइट्रोजन, 50 की.ग्रा. फास्फोरस तथा 75 की.ग्रा. पोटाश/हेक्टेयर तत्व के रूप में संकर किस्मों में प्रयोग करना चाहिए। फास्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा पौध रोपण के समय पंक्तियों से देना चाहिए। शेष नाइट्रोजन की एक तिहाई बराबर भागों में बाटकर पौध रोपण के बाद क्रमशः 20 दिन, 40-60 दिन बाद टॉपड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए (NPK 19:19:19  + मल्टीप्लायर 20 ग्राम + ऑल क्लियर 3 मिली + 1 मिली कृष्णा स्प्रे प्लस / प्रति 15 लीटर पानी.

    5. खरपतवार नियंत्रण (weed control) :-
    खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी  पेन्डामेथालिन  30 ई.सी. रसायन का 3 लीटर 1000 ली. पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई से पूर्व खेत में छिड़काव करने से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं और उपज अच्छी प्राप्त होती हैं। पौध रोपण के तीस दिन बाद जड़ों पर मिट्टी चढ़ा देना चाहिए ताकि पौधों की जड़ों के पास की मिट्टी पानी से बैठने न पाये और वायु का संचार बराबर बना रहें।


    6. सिंचाई (Irrigation) :-
    पौध रोपण के तुरंत बाद एक हल्की सिंचाई करना चाहिए। अच्छी फसल लेने के लिए भूमि में पर्याप्त नमी रखना आवश्यक हैं अतः 10-15 दिन के अंतर पर मिट्टी पानी में बैठ पाए और वायु का संचार बराबर बना रहें। सिंचाई करते रहना चाहिए।

    7. शिमला मिर्च के मुख्य रोग एवं कीट प्रबंधन (Major diseases and pest management of capsicum) :-
    शिमला मिर्च में मिर्च की भांति अनेक रोग एवं कीट लगते हैं। जो फसल को हानी पहुंचाते हैं। मुख्य रोग एवं कीट तथा उनका उपचार निम्नलिखित हैं।

    आर्द्रगलन रोग (Wet rot disease),
    यह मुख्यतः नर्सरी में लगने वाला रोग हैं। बीज या तो भूमि के अंदर ही फफूंद के प्रकोप से जड़ जाते हैं या जमने के बाद पौधों का भूमि के अंदर ही फफूंद के प्रकोप से सड़ जाते हैं या जमने के बाद पौधों का भूमि की सतह से लगा तना पतला हो जाता हैं और बाद में विगिलित होकर गिर जाता हैं। अधिक नम और गर्म भूमि में यह रोग तेजी से बढ़ता हैं।

    उपचार (the treatment),
    बीज शोधन ट्राइकोडर्मा 4.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज अथवा कार्बेन्डाजिम या थाइरम 2.5 ग्रा. प्रति किग्रा. बीज की दर से करना चाहिए। भूमि शोधन एवं जल निकास से रोग नियंत्रित रहता हैं। नर्सरी में थाइरम या केप्टान 45  ग्राम  + मल्टीप्लायर 20 ग्राम + ऑल क्लियर 3 मिली + 1 मिली कृष्णा स्प्रे प्लस / प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से भी रोग का प्रकोप कम होता हैं।

    डाइबैक (Dieback),
    इस रोग का प्रकोप फल एवं टहनियों पर होता हैं। रोग के लक्षण सर्वप्रथम पौधों के शीर्ष भाग के सूखने के रूप में प्रकट होते हैं। फफूंद के प्रकोप से पौधे के ऊतक नष्ट हो जाते हैं और पौधा ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगता हैं। रोग का आक्रमण पक रहें फलों पर भी होता हैं। फलों पर काले व पिले छोटे-छोटे गोल धब्बे बनते हैं। धब्बों का घेरा गहरे रंग का होता हैं। उग्र अवस्था में फल सिकुड़ जाते हैं।

    उपचार (the treatment),
    बीज शोधित कर बोए। रोग लक्षण दिखाई देते ही मेंकोजेब 75 डब्ल्यू. पी. 2.5 की.ग्रा. कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 की.ग्रा./हेक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़कना चाहिए।

    विषाणु जनित रोग (viral disease),
    जैसे लिफ़ कर्ल (पत्ती कुंचन), मोजेक तथा पत्ती में कोशिकाओं का मोटा होना एवं सिकुड़ जाना आदि से शिमला मिर्च की उपज की  फसल मिर्च की ही भांति प्रभावित होती हैं और उपज 50% तक कम  हो जाती हैं मोजेक रोग का प्रसार माहू तथा लिफ़ कर्ल का सफेद मक्खी के द्वारा होता हैं।

    उपचार (the treatment),
    रोगी पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। फल आने से पहले फसल पर हर 10-15 दिन के अंतर पर नीम का तेल 100 ग्राम  + मल्टीप्लायर 20 ग्राम + ऑल क्लियर 3 मिली + 1 मिली कृष्णा स्प्रे प्लस / प्रति 15 लीटर पानी से एक लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कना चाहिए अथवा मेलाथियान 50 ई.सी. 2 ली. प्रति हेक्टेयर या 35 ई.सी.1.25 ली. प्रति हेक्टेयर की दर से अद्ल-बदल कर छिड़कना चाहिए। 2% ऑयल (पॉवर ऑयल) का छिड़काव करने से सफेद मक्खी की संख्या को नियंत्रित किया जा सकता हैं। इसका छिड़काव फल लगने के बाद करना चाहिए।
          कीटनाशी रसायन एवं तेल को साथ मिलाकर छिड़कने से भी लाभ होता हैं। शिमला मिर्च में खेत के चारों और रक्षक फसल लगाना चाहिए जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा आदि। इनकी पांच से छः पंक्तियों में बुवाई मिर्च की रोपाई से 50-60 दिन पहले खेत में कर देनी चाहिए। यह फसलें लिफ़ कर्ल विषाणु से मुक्त हैं और सफेद मक्खी को खेत में घुसने से रोकती हैं।
          इस अवरोध फसल के साथ ही खेत में कीटनाशी का छिड़काव भी 2-3 बार करने से फसल कीट मुक्त रहती हैं। खेत में पॉलीथिन की तरह बिछाना (मल्च) भी लाभकारी सिद्ध हुआ हैं। पिले रंग के मल्च से ज्यादा लाभ मिला हैं। कीटनाशी का छिड़काव एवं मल्च दोनों का प्रयोग करके फसल को निरोग रखा जा सकता हैं।

    जीवाणु म्लानि रोग (Bacterial disease),
    शाकाणु द्वारा उत्पन्न यह उकटा रोग हैं जिसमे हरा पौधा मुरझा जाना इस रोग की प्रमुख पहचान हैं।

    उपचार व रोकथाम (Treatment and prevention),
    मिट्टी जनित रोग हैं अतः अप्रेल-मई में खेत की गहरी जुताई कर खाली रखना चाहिए।
    प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दे।
    नत्रजन हेतु अमोनियम सल्फेट उर्वरक का प्रयोग करें।

    अल्टरनेरिया पर्ण दाग (Alternaria Leaf Stain),
    रोग ग्रसित पौधों की पत्तियां झुलस जाती हैं और गिर जाती हैं। रोग का प्रकोप फलों पर भी होता हैं और उग्रावस्था में फल गिर जाते हैं।

    उपचार व रोकथाम (Treatment and prevention),
    बीज शोधित कर बोए।
    खड़ी फसल पर रोग का लक्षण देखते ही फफूंदनाशी का छिड़काव करें।

    शिमला मिर्च के प्रमुख कीट, रोंएदार कीट या थ्रिप्स (Major  thrips or Hairy insect of capsicum),
    यह काले रंग का रोंएदार कीट हैं जिसका ऊपरी भाग बड़ा एवं तिकोना होता हैं जो अग्रवक्ष को ढके रहता हैं। ये पत्तियों का रस चूसकर पौधों को कमजोर बना देता हैं। इसका प्रकोप सितम्बर-अक्टुम्बर तक अधिक रहता हैं।

    उपचार व रोकथाम (Treatment and prevention),
    थ्रिप्स के नियंत्रण हेतु मोनोक्रोटोफॉस 37.5 मी.ली.  + मल्टीप्लायर 20 ग्राम + ऑल क्लियर 3 मिली + 1 मिली कृष्णा स्प्रे प्लस / प्रति 15 लीटर पानी  में अथवा डायमिथोएट 24 मी.ली. + मल्टीप्लायर 20 ग्राम + ऑल क्लियर 3 मिली + 1 मिली कृष्णा स्प्रे प्लस / प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर 10-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।

    रसाद कीट (Logistic moth),
    प्रौढ़ कीट एक मि.मी. से कम लम्बा, कोमल तथा हल्के पिले रंग का होता हैं। इसके पंख झालदार होते हैं।  ये सैकड़ों की संख्या में पत्तियों की निचली सतह पर छिपे रहते हैं और पत्तियों का रस चूसते रहते हैं। इनके द्वारा मार्च से नवम्बर तक हानी पहुंचाई जाती हैं।
    उपचार व रोकथाम (Treatment and prevention),
    उपरोक्त की भांति छिड़काव करें।


    कटुआ कीट (Catfish),
    यह कीट पौधों को काट देता हैं।
    उपचार व रोकथाम (Treatment and prevention),
    जिसे रोकने के लिए फॉलिडोल धूल भूमि में रोपाई से पूर्व 20-25 की.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाना चाहिए।

    8. फलों की तुड़ाई (Fruit harvesting) :-
    पूर्ण विकसित और बड़े आकार के स्वस्थ्य हरे फल बिक्री के लिए उत्तम रहते हैं। फलों की तुड़ाई पौध रोपण के 90-95 दिन बाद शुरू हो जाती हैं और 15-20 दिन के अंतर पर तुड़ाई की जाती हैं। शिमला मिर्च की औसत उपज 80-180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती हैं। कुशल प्रबंधन और वैज्ञानिक तकनीक द्वारा उपज को 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक बढ़या जा सकता हैं।

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