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    सोयाबीन की खेती की कुछ महत्वपूर्ण जानकारी एवं सावधानीया ,



    सोयाबीन खेती की जानकारी (Soybean farming information) :-

    मध्यप्रदेश में सोयाबीन खरीफ की एक प्रमुख फसल है, जिसकी खेती लगभग 53.00 लाख हैं. क्षेत्रफल में की जाती है । देश में सोयाबीन उत्पादन के क्षेत्र में म.प्र. अग्रणी है, जिसकी हिस्सेदारी 55: से 60: के मध्य है लेकिन उत्पादन पर नजर डालेंगे तो पायेंगे कि हमारे देश की उत्पादकता 10 कि./हे. हैं, जो कि एशिया की औसत उत्पादन 15 क्विं /हैक्ट०. की तुलना में काफी कम है । अकेले मालवा जलवायु क्षेत्र में सोयाबीन का क्षेत्रफल लगभग 22 से 25 लाख है, अच्छादित है । इससे स्पष्ट है, कि प्रदेश में सोयाबीन का भविष्य इसी क्षेत्र द्वारा नियंत्रित होता है । उज्जैन जिले में सोयाबीन की खेती लगभग 4.00 है, से अधिक क्षेत्र में की जाती है ।

    यदि सोयाबीन उत्पादकता कमी के कारणों पर प्रकाश डालेंगे तो हम पायेंगे कि सोयाबीन की खेती वर्तमान में विभिन्न प्रकार की विषम परिस्थितियों से गुजर रही है अर्थात दिन प्रतिदिन इसकी खेती में विभिन्न खर्च में अत्याधिक वृद्धि  हो रही है । जिससे कृषकों को आर्थिक दृष्टिकोण से ज्यादा लाभ प्राप्त नहीं हो रहा है ।

    ( ये भी पड़े :- सोयाबीन में कीट एवं रोगों की पहचान तथा उपचार कैसे करे ?? )

    बोनी से पहले खेत की तैयारी (Preparation of field before Bonnie) : –

    1. मिट्टी परीक्षण (Soil testing)
    संतुलित उर्वरक प्रबंधन एवं मृदा स्वास्थ्य हेतु मिट्टी का मुख्य तत्व जैसे नत्रजन, फासफोरस, पोटाश, द्वितियक पोषक तत्व जैसे सल्फर, केल्शियम, मेगनेशियम एवं सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जस्ता, तांबा, लोहा, मेगनीज़, मोलिब्डिनम, बोराॅन साथ ही पी.एच., ई.सी. एवं कार्बनिक द्रव्य का परीक्षण करायें ।

    2. ग्रीष्मकालीन जुताई (Summer plowing)

    • खाली खेतों की ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से माह मार्च से 15 मई तक 9 से 12 इंच गहराई तक करें
    • मृदा के भौतिक गुणों में सुधार होगा, जैसे मृदा में वातायन, पानी सोखने एवं जल धारण शक्ति, मृदा भुरभुरापन, भूमि संरचना इत्यादि ।
    • खरपतवार नियंत्रण में सहायता प्राप्त होगी ।
    • कीड़े मकोड़े तथा बिमारियों के नियंत्रण में सहायक होता है ।
    • उर्वरक प्रबंधन एवं जिवांश पदार्थ के विघटन में लाभकारी सिद्ध होता है ।

    बीज की मात्रा एवं बोवनी के समय सावधानी (Carefulness of seeds and sowing time) :-

    1. बुवाई हेतु दानों के आकार के अनुसार बीज की मात्रा का निर्धारण करें । पौध संख्या 4-4.5 लाख/हे. रखे ।
    2. छोटे दाने वाली प्रजातियों के लिये बीज की मात्रा 60-70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें ।
    3. बड़े दाने वाली प्रजातियों के लिये बीज की मात्रा 80-90 कि.ग्रा. प्रति हेक्टयर की दर से निर्धारित करें ।
    4. गहरी काली भूमि तथा अधिक वर्षा क्षेत्रों में रिजर सीडर प्लांटर द्वारा कूड (नाली) मेड़ पद्धति या रेज्ड बेड प्लांटर या ब्राड बेड फरो पद्धति से बुआई करें ।
    5. बीज के साथ किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरको का प्रयोग न करें । 


    सोयाबीन के प्रमुख रोग  रोकथाम (soybean major disease and prevention) ---

    1. पाद गलन Leaf rot(Collar rot) :– यह रोग प्रारंभिक अवस्था में होता है। अधिक तापमान एवं नमी इस रोग के लिए अनुकूल है। यह मृदा जनित रोग है।
      रोकथाम (Prevention),,- गर्मी में गहरी जुताई करें। बीज उपचार के लिए 2 ग्राम थायरम एवं 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपयोग करें। रोगग्रसित पौधे को उखाड़ कर पॉलीथिन में रख कर खेत के बहार गड्डे में गाड़ दें या नष्ट करें। 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में बाविस्टीन का घोल बना कर रोगग्रसित पौधे जंहा से उखाड़े है वहां पर छिडकाव करें।

    2. गेरुआ या रस्ट (Gerua or Rust) :– इस रोग का प्रकोप जब लगातार वर्षा होने एवं तापमान कम (22 से 27 डिग्री सेल्सियस) तथा अधिक नमी (आपेक्षिक आर्द्रता 80-90 प्रतिशत) होने पर इस रोग की सम्भावना बढ़ जाती है तथा रात या भोर के समय कोहरा रहने पर रोग की तीव्रता बढ़ जाती है।
       रोकथाम (Prevention),,- रोग प्रतिरोधक किस्में इंदिरा सोया-9, तथा फुले कल्याणी आदि की बुवाई करें। रबी एवं गर्मी में सोयाबीन की खेती न करें रबी फसलों के साथ उगने वाले सोयाबीन के पौधों को उखाड़ कर नष्ट करें। रोगग्रसित पौधे को उखाड़ कर पॉलीथिन में रख कर खेत के बाहर गड्ढे में गाड़ दें या नष्ट करें। हेक्साकोनाजोल या प्रोपिकोनाजोल (टिल्ट) दवाईयों में से किसी एक का 700 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें तथा 15 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव करें।

    3. एन्थ्रेक्नोज एवं फली झुलसन (Anthracnose and pod Scorching) :– इस रोग का प्रकोप अधिक तापमान एवं नमी होने पर होता है।
       रोकथाम (Prevention) ,,- बीज उपचार के लिए 2 ग्राम थायरम एवं 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपयोग करें। तथा रोग के लक्षण दिखाई देने पर बेलेटान या थयोफिनेट मिथाईल 1-2 ग्राम प्रति लीटर पानी के मान से छिड़काव करें। रोग प्रतिरोधक किस्में जेएस 97-52 एवं जेएस 80.21 की बुवाई करें।

    4. पीला मोजाइक वायरस (Yellow mosaic virus) :– इस रोग को सफेद मक्खी फैलाती है।
       रोकथाम (Prevention),,- पीला मोजाइक वायरस फैलाने वाली सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए बीज को थायोमिथोक्साम 30 एफ.एस. से 3 ग्राम अथवा इमिडाक्लोप्रिड एफ.एस. 1.25 मिलीलीटर प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। फसल पर सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए बीज को थायोमिथोक्सम 25 डब्ल्यू.जी. का 100 ग्राम को 500 लीटर पानी में घोल कर/ हे. की दर से छिड़काव करें।

    5. चूर्णिल आसिता (पावडरी मिल्डयू) :– इस रोग के लिए 18-24 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल होता है।
    रोकथाम (Prevention),,- प्रबंधन के लिये रोग रोधी किस्म पी.के. 472 की खेती करें। रोग के लक्षण दिखाई देने पर केराथेन या कार्बेन्डाजिम का 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करें।

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