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    सोयाबीन में कीट एवं रोगों की पहचान तथा उपचार कैसे करे ?? पड़े...



    सोयाबीन एक ग्रंथिफुल फसल है। यह दलहन के बजाय तिलहन की फसल मानी जाती है। सोयाबीन दलहन की फसल है शाकाहारी मनुष्यों के लिए इसको मांस भी कहा जाता है क्योंकि इसमें बहुत अधिक प्रोटीन होता है। इसका वानस्पतिक नाम गलीसईन मैक्स (Glycine Max) है।स्थ्य के लिए एक बहुउपयोगी खाद्य पदार्थ है। सोयाबीन एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है। इसके मुख्य घटक प्रोटीन, कार्बोहाइडेंट और वसा होते है। सोयाबीन में 38-40 प्रतिशत प्रोटीन, 22 प्रतिशत तेल, 21 प्रतिशत कार्बोहाइडेंट, 12 प्रतिशत नमी तथा 5 प्रतिशत भस्म होती है।
    सोयाबीन का उद्गम स्थान अमेरिका हें इसका उत्पादन चीन, भारत आदि देश में हें. सोयाबीन की खेती सम्पूर्ण भारत में की जाती हें लेकिन देश में प्रथम मध्य्प्रधेश दूसरा महाराष्ट्र तीसरा राजस्थान राज्य हें।

    ( ये भी पड़े :- सोयाबीन की खेती की कुछ महत्वपूर्ण जानकारी एवं सावधानीया , )

    मौसम में लगातार उतार-चढ़ाव से मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसी कई राज्यों की प्रमुख फसल सोयाबीन में कई तरह के कीट व रोगों का प्रकोप बढ़ गया है। भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की है कि अगर सही समय पर इनका रोकथाम नहीं किया गया तो किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

    कुछ प्रमुख कीट जिनसे फसलों को बहूत नुकसान होते है :-

    1. तना मक्खी (मेलेनेग्रोमइजा फैजियोलाई) तना छेदक कीट


    पहचान (recognise) :- मादा मक्खी आकर में 2 मि.मि. लम्बी होती है ! मक्खी का रंग पहले भूरा तथा बाद में चमकदार काला हो जाता है  मादा मक्खी अण्डे पत्ती की निचली सतह पर देती है जो की हलके पीले सफेद रंग के होते है , इल्ली हमेशा तने के अंदर रहती है तथा बिना पैरों वाली एवं हल्के पीले सफेद रंग की होती है शंखी भरे रंग की एवं ताने के अंदर ही पाई जाती है !

    प्रकोप होने का समय (The time of the outbreak) :- प्रारंभिक अवस्था में प्रकोपित पौधे मर जाते हैं ! बीज पत्रों में प्रकोप के कारण टेड़ी- मेढ़ी लकीरे बनती है । इल्ली पट्टी के शिरे से डंठल को अन्दर से खातें हुए ताने में प्रवेश करती है । कीट प्रकोप से प्रारंभिक वृद्धि अवस्था (दो से तिन पत्ती ) में 20 – 30% पौधे प्रकोपित होते है । इल्ली का प्रकोप फसल कटाई तक होता है । फसल में कीट प्रकोप से 25 – 30 % उपज की हानि होती है ।

    जीवन चक्र (Life Cycle) :- मादा मक्खी शंखी से निकलने के पश्चात् पत्ती अ बीज पत्रों के बीच 14 से 64 अण्डे देती है । अण्डकाल 2 – 3 दिनों का होता है , इल्ली काल 7 – 12 दिनों का होता है ।इल्ली अपना एल्लिकल पूर्ण करने के पूर्व ताने में एक निकासी छिद्र बनाकर शंखी में बदलती है । शंखी 5 –9 दिनों में वयस्क कीट में बदलती है । कीट की साल भर में 8 –9 पीढ़ियां होती है ।

    नियंत्रण (Control) ,,

    कृषिगत नियंत्रण (Agricultural control) :- समय पर बुवाई करें । देर से बुवाई करने से पौधे में कीट प्रकोप बढ़ जाता है । बुआई हेतु अनुशंसित बीज दर का उपयोग करें । प्रकोपित पौधों को उखाड़ कर नष्ट करें !

    रसायनिक नियंत्रण (Chemical control) :-  थायोमेथाक्सम 70 डब्ल्यू.एस.3 ग्राम/किलो ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल.कब्रोफ्यूरान 3 जी का 30 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से बोआई के समय करें ! एक या दो छिडकाव डायमिथोएट 30 ई.सी. 700 मि.ली. या इमिडाक्लोप्रिड 200मि.ली. अथवा थायोमेथाक्सम 25 डब्ल्यू. जी. का 100ग्राम प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करें । हमेशा होलोकोन नोजल का उपयोग छिडकाव हेतु करें ।

    2. चक्र भृंग (ओबेरिया ब्रेविस) तना छेदक कीट

    पहचान (recognise) :- वयस्क भृंग 7 – 10मि.मि.लम्बा, 2 से 4 मि.मि.चौरा तथा मादा नर की अपेछा बड़ी होती है । भृंग का सिर  एवं वक्ष नारंगी रंग का होता है । पंख वक्ष से जुड़ा होता है । पंख का रंग गहरा भूरा – काला ,श्रृंगिकाएं कलि तथा शारीर से बड़ी होती है । अण्डे पीले रंग के लम्बे गोलाकार होते है , पूर्ण विकसित इल्ली पीले रंग की 19 – 22 मि.मि. लम्बी तथा शारीर खंडो में विभाजित व सिर भूरा रंग का होता है ।

    प्रकोप होने का समय (The time of the outbreak) :- पौधों में जहां पर्णवृन्त,टहनी या ताने पर चक्र बनाए जाते है , उसके ऊपर का भाग कुम्ल्हा कर सुख जाता है । मुख्य रूप से ग्रब (इल्ली) द्वारा नुकसान होता है । इल्ली पौधे के तने को अन्दर से खाकर खोखला कर देता है । पूर्ण विकसित इल्ली फसल पकने के समय पौधों को 15से 25 से.मि. ऊचाई से काटकर निचे गिरा देती है जिससे अपरिपक्व फल्लियाँ उपयोग लायक नही होती है । प्रकोपित फसल में अधिक नुकसान होने पर करीब 50% तक हनी होती है ।

    जीवन चक्र (Life Cycle) :- चक्र भृंग कीट का स्किरोये समय जुलाई से अक्टूबर माह तथा अगस्त से सितंबर माह में अधिक नुकसान होता है । मादा कीट अण्डे देने के लिए पौधे के पत्ती, टहनी अ ताने के डंठल पर मुखंगो द्वारा दो चक्र 6- 15 मि.मि. की दुरी पर बनती है । मादा कीट संपूर्ण जीवन कल में 10 – 70 अण्डे देती है अण्डो से 8 दिनों में झिल्लियाँ निकलती है। जुलाई माह में दिये अण्डो से निकली इल्ली का इल्ली – कल 32 से 65 दिनों का होता है । तद्पश्चात इल्ली शंखी में परिवर्तित हो जाती है ।

    फसल काटने से पहल इल्लियाँ पौधों को भूमि के ऊपर से कट देती है तथा स्वंय उपरी कटे हुए पौधे के अन्दर रह जाती है । कुछ दिनों पश्चात इल्लियाँ पुन: ऊपरीकटे हुए पौधों में से एक टुकड़ा 18 से 25 मि.मि. लम्बा काटती है । फिर ये इल्लियाँ इस टुकड़े में आ जाती है तथा भूमि दरारों में विशेषकर मेड़ों के पास जमीं के अन्दर टुकड़े का दूसरा छोर भी कुतरने से बंद कर सुसुप्तावस्था (248-308 दिनों हेतु) में इल्ली जीवन चक्र शुरू करती है । शंखी से वयस्क कीट 8 – 11 दिनों में निकलते है ।

    नियंत्रण (Control) ,

    कृषिगत नियंत्रण (Agricultural control) :- जिन क्षेत्रों में कीट प्रकोप प्रतिवर्ष होता है वहां पर ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई अवश्य करें । मेढ़ों की सफाई करें तथा समय से खरपतवार नियंत्रण करे । फसल की बुआई समय से (जुलाई) करें । समय से पूर्व बुआई करने से कीट प्रकोप ज्यादा होता है । बुआई हेतु 70 – 80 किलो ग्राम प्रति हेक्टेर बीज दर का उपयोग करें । फसल में उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा समय से डालें विशेषकर पोटाश की मात्रा जरुर डाले । अन्त्र्वार्तीय फसल ज्वार या मक्का के साथ बुआई न करें ।

    यांत्रिक नियंत्रण (Mechanical control) :- प्रभावित पोधे के भाग को चक्र के नीचे से तोड़ कर नष्ट कर दें ,

    रसायनिक नियंत्रण (Chemical control) :-  फसल पर कीट के अण्डे देने की शुरुआत पर निम्न में से किसी एक कीटनाशक का छिड़काव कीट नियंत्रण हेतु करे । ट्रायाजोफांस 40ई.सी. 800 मि.ली. अथवा इथोफेनप्राक्स10 ई.सी.1000 मि.ली. प्रति हेक्टेयर ।

    3. हर्री अर्द्धकुण्डलाकार इल्ली (क्रायासोड़ेंकसीस एकयुटा) पत्तियाँ खाने वाले कीट

    पहचान (recognise) :- शलभ के अग्र पंखो पर दो छोटे चमकीले सफेद रंग के धब्बे होते है । जो की अत्यंत पास होने के कारण अंग्रेजी के अंक आठ (8) के आकर के दिखते हैं । अण्डे हलके पीले रंग के एवं गोल होते है जो की इल्लियों के निकलने के पहले काले पड़. जाते है । एल्लियादिन में समान्त: पत्तियों के निचे बैठी रहती है । पूर्ण विकसित इल्ली 37 से 40 मि.मी. लम्बी होती है , एवं पश्च भाग मोटा होता है । इल्लियों के पृष्ट भाग पर एक लम्बवत पिली तथा शारीर के दोनों ओर एक – एक सफेद धारी होती है इल्लियों के पृष्ठ भाग पर एक लम्बवत पीली तथा शारीर के दोनों ओर एक – एक सफेद धारी होती है । शंख प्रारंभ में हलके पीले रंग की तथा कालान्तर में भूरे रंग की होती है शंखी 19 मि.मी.लम्बी तथा 7 मि.मी. चौड़ी होती है ,

    प्रकोप होने का समय (The time of the outbreak) :- इल्लियाँ पत्तियों, फूलों एवं फल्लियों को खा कर क्षति पहुँचती है । बड़ी इल्लियाँ छोटी विकसित होती हुई फल्लियों को कुतर – कुतर कर खाती है तथा बड़ी फल्लियों में छेद कर बढ़ते हुए दानों को खाती है । अधिक प्रकोप होने पर करीब 30% फल्लियाँ अविकसित रह जाती है तथा उनमे डेन नहीं भरते ।

    जीवन चक्र (Life Cycle) :- मादा शलभ अपने जीवन कल में 40 से 200 अण्डे देती है अत्यधिक ज्यादा प्रकोप होने पर पत्ती डंठल या तानों पर भी अण्डे देती है । अण्डे हलके पीले रंग के एवं गोल होते है जो की इल्लियों के निकलने के पहले काले पड़ जाते है । अण्डकाल 3 से 5 दिनों का होता है । इल्ली कल 14 – 15 दिनों का होता है । शंखी से वयस्क 5 – 7 दिनों में निकलते है । कीट अपना एक जीवन चक्र 24 – 26 दिनों में पूर्ण करता है ।

    रसायनिक नियंत्रण (Chemical control) :- प्रोफेनोफाम 50 ई.सी. 1.2 ली. या रायनेक्सीपार 10 एस.पी.100 मि.ली. या इमामेकिटन बेंजोएट 5 एस.जी. 180 ग्राम या मिथोमिल 40 एस.जी. 1000 मि.ली. या प्रोफेनेफास 500 ई. सी. 1.25 ली. अ लेम्बड़ा सायलोहेर्थिन 5 ई.सी. 300 मि.ली. या इनडोक्सकर्ब 14.8एस.एल. 300 मि.ली./ हे. के हिसाब से उपयोग करें ।

    4. हरी अर्द्धकुण्डलाकार इल्ली (गिसोनिया गेमा) पत्तियाँ खाने वाले कीट

    पहचान (recognise) :- शलभ की लम्बाई 7.3 मि.मी. तथा पंख फैलाव पर 19.4 मि.मी. होती है । शलभ पिली भूरी रंग की होती है जिसके अगले पंख पर तिन लहरदार गहरे भूरी पट्टियांएवं पिछले पंख झिल्लीनुमा गहरे भरे रंग के होते है । अण्डे दुधिया सफेद, गोलाकार पर ऊपरी छोर पर कुछ अन्दर दबा हुआ तथा ऊपर से निचे धारियों तथा आकार में 0.32 मि.मी. के होते हैं । नवजात इल्ली अर्धप्रदर्शी, दुधिया सफेद तथा 0.17 मि.मी. आकर में.होती है । पूर्ण विकसित इल्ली 19 मि.मी. लम्बी तथा 2 मि.मी. चौडाई की होती है तथा पृष्ट भाग पर लम्बवत शरीर के दोनो ओर एक – एक सफेद धारी होती है । शंखी 7 मि.मी. लम्बी तथा 2.5 मि.मी. चौडाई होती है ।

    जीवन चक्र (Life Cycle) :- मादा शलभ एक – एक करके अण्डे पत्ती की उपरी सतह पर देती है । मादा शलभ अपने जीवन कल में 160 अण्डे देती है । सम्पूर्ण इल्ली अवस्था 11 दिनों की तथा शंखी अवस्था 5 – 9 दिनों की होती है । इल्लीकाल पूर्ण कर सफेद रेशों एवं पत्ती से मिश्रित बने कोए में शंखी में परिवर्तित हो जाती है । पूर्ण जीवन चक्र 26 – 27 दिनों का होता है ।

    प्रकोप होने का समय (The time of the outbreak) :- यह कीट सोअबिं पर अगस्त के प्रथम सप्ताह से सितंबर के तृतीये सप्ताह तक सक्रिय रहता है । इल्ली अवस्था फसल की पत्तियाँ खाकर नुकसान पहुँचती है ! जिससे पत्तियों पर छोटे – छोटे छिद्र बनते है । तृतीय अवस्था की इल्ली द्वारा पत्तियो में छोटे – छोटे छेद् बनाकर खाती है जबकी  बड़ी इल्लियाँ पत्तियोंपर बड़े एवं अनियमित छेद करती है अधिक प्रकोप अवस्था में फसल की पत्तियों के केवल शिराएँ बची रह जाती है ।

    नियंत्रण (control) :- निरंतर फसल की निगरानी करते रहें , जब कीट की संख्या आर्थिक क्षति स्तर (तिन इल्ली/मी. कतार फूल अवस्था) से ऊपर होने सिफारिस अनुसार ही कीटनाशक का छिड़काव करें ।

    5. भूरी धारीदार अर्धकुण्डलक इल्ली (मोसिस अनडाटा) पत्तियाँ खाने वाला कीट

    पहचान (recognise) :- वयस्क शलभ काले भूरे रंग के एवं आकर में अन्य अर्धकुण्डलक शलभ से बड़ी होती है । जिसका पंख फैलाव 35 – 45 मि.मी. होता है । अग्र पंखों पर तीन धूये के रंग की पट्टियां पाई जाती है । अण्डे हलके हरे रंग के गोल होते है ।नवजात इल्लियाँ हरे रंग की होती है । जिनके शारीर पर छोटे छोटे रोंये पाये जाते है । तथा सिर भूरे रंग का होता है । पूर्ण विकसित इल्लियाँ 40 – 50 मि.मी. लम्बी, भूरे – काले रंग की तथा शरीर पर भूरी पिली या नारंगी लम्बवत धारियाँ होती है ।शंखी भूरे रंग की एवं की एवं सफेद धागों तथा पत्तियाँ के मिश्रण से बने कोये में पाई जाती है ।

    जीवन चक्र (Life Cycle) :- मादा अपने जीवन काल में 50 – 200 अण्डे देती है । जिसमे से 3 – 5 दिनों में नवजात इल्लियाँ निकलती है । इल्लियाँ 6 – 7 बार त्वचा निमोर्चन कर 17 – 22 दिनों में अपना ईल्लिकाल पूर्ण कर सफेद रेशो एवं पत्ती से मिश्रित बने कोये में शंखी में परिर्वतित हो जाती है । शंखी कल 8 – 17 दिनों का होता है । वयस्क कीट 7 – 20 दिनों तक जीवित रहते है । कीट का जीवन चक्र सितंबर में 31 – 35 दिनों का जबकि अक्टूबर से दिसम्बर में 38 – 43 दिनों का होता है ।


    प्रकोप होने का समय (The time of the outbreak) :- इसका कीट प्रकोप कम वर्षा सूखे की दशा में ज्यादा होता है । यह कीट इल्ली अवस्था में अगस्त से अक्टूबर माह में सोयाबीन में नुकसान पहुंचाती है । प्रकोप ज्यादा होने की दशा में कीट पौधों को पत्ती विहीन कर देता है जिससे फल्लियाँ कम बनती है ।

    नियंत्रण (control) :- निरंतर फसल की निगरानी करते रहें । यदि कीट की संख्या कम होने पर कीटनाशक का छिडकाव न करें , कीट का ज्यादा प्रकोप होने पर सिफारिस अनुसार कीटनाशक दवाओं का छिडकाव करें

    6. तम्बाकू की इल्ली (स्पोड़ोपटेरा लिटूरा) पत्तियाँ खाने वाला कीट

    पहचान (recognise) :- वयस्क शलभ जिसका रंग मटमैला भूरा होता है । अग्र पंख सुनहरे – भूरे रंग के सिरों पर टेड़ी – मेढ़ी धारियां तथा धब्बे होते है । पश्च – पंख सफेद तथा भरे किनारो वाले होते है । नवजात इल्लियाँ मटमैले – हरे रंग की होती है पूर्ण विकसित इल्लियाँ हरे, भूरे या कत्थाई रंग होती है शरीर के प्रतेक खंड के दोनों तरफ काले तिकोन धब्बे इसकी विशेष पहचान है । इसके उदर के प्रथम एवं अंतिम खंडों पर काले धब्बे एवं शारीर पर हरी – पिली गहरी नारंगी धारियाँ होती है । पूर्ण विकसित इल्लियाँ 35 – 40 मि.मी. लम्बी होती है ,

    प्रकोप होने का समय (The time of the outbreak) :- यह कीट सामान्यत: अगस्त से सितंबर तक नुकसान करती है । नवजात इल्लियाँ समूह में रहकर पत्तियों का पर्ण हरित खुरचकर खाती है जिससे ग्रसित पत्तियाँ जालीदार हो जाती है जो की दूर से ही देख कर पहचानी जा सकती है । पूर्ण विकसित इल्ली पत्ती, कलि एवं फली तक को नुकसान करती है ।

    जीवन चक्र (Life Cycle) :- मादा शलभ द्वारा 1000 – 2000 तक अण्डे अपने जीवन कल में देती है तथा 50 – 300 अण्डे प्रति अण्डा – गुच्छ में पत्तियों की निचली सतह पर दी जाते है। अण्डा – गुच्छों को मादा अपने शरीर के भूरे बालों द्वारा ढक देती है ।नअंडा अवस्था 3 – 7 दिनों का होती है । अण्डो से 2 – 3 दिनों में इल्लियाँ निकलती है । नवजात इल्लियाँ पीले – हरे रंग की होती है जो 4 – 5 दिनों तक पत्ती की निचली सतह पर ही समूह में रह पर्ण – हरित खुरच – खुरच कर जाती है । पूर्ण विकसित इल्ली 30 – 40 मि.मी. लम्बी होती है तथा 20 – 22 दिनों में शंखी में बदली जाती है ! शंखी भूमि के भीतर कोये में पाई जाती है । शंखी में से 8 – 10 दिनों बाद वयस्क शलभ निकलते है । सोयाबीन फसल पर इस कीट का पूरा जीवन चक्र 30 – 37 दिनों का होता है । यह सर्वभक्षी कीट है ।

    नियंत्रण (control),,

    कृषिगत नियंत्रण (Agricultural control) :- बुआई हेतु अनुशंसित (70 – 100 कि.) बीज दर का उपयोग करें । नियमित फसल चक्र अपनाये ।

    यांत्रिक नियंत्रण (Mechanical control) :- फिरोमोन ट्रेप 10 – 12 / हेक्टेयर लगाकर कीट प्रकोप का आंकलन एवं उनकी संख्या कम करें । अण्डे व इल्लियों के समूह को इक्कठा कर नष्ट कर दें ।

    रसायनिक नियंत्रण (Chemical control) :- क्लोरापेरिफास 20 ई.सी. 1.5 ली., प्रोफेनोफाम 50 ई.सी. 1.2 ली. या रायनेक्सीपार 10 एस.पी.100 मि.ली. या इमामेकिटन बेंजोएट 5 एस.जी. 180 ग्राम या मिथोमिल 40 एस.जी. 1000 मि.ली. या प्रोफेनेफास 500 ई. सी. 1.25 ली. अ लेम्बड़ा सायलोहेर्थिन 5 ई.सी. 300 मि.ली. या इनडोक्सकर्ब 14.8एस.एल. 300 मि.ली./ हे. के हिसाब से उपयोग करें ।

    7. बिहार कम्बलिया कीट (स्पोईलोसोमा ओबलीकुआ) पत्तियाँ खाने वाले कीट

    पहचान (recognise) :- शलभ का सर, वक्ष और शारीर का निचला हिस्सा हल्का पिला एवं उपरी भाग गुलाबी रंग का श्रृंगिकाये व आँखे काली तथा पंख हलके पीले जिन पर छोटे – छोटे काले धब्बे पाये जाते है । शलभ पंख फैलाव पर करीब 40 – 60 मि.मी. होता है । अण्डे पहले हरे तथा परिपक होने पर काले हो जाट है । नवजात इल्लियाँ पिली तथा शरीर पर रोएं हो जाते है । इल्ली की तीसरी अवस्था लगभग 20 – 25 मि.मी. लम्बी होती है जो की इधर उधर घूम कर अधिक नुकसान करती है पूर्ण विकसित इल्लियाँ 40 – 45 मि.मी. तक लम्बी होती है तथा भूरे लाल रंग की एवं बड़े रोए वाली होती है । पूर्ण विकसित इल्लियाँ अपने शरीर के बालों को लार से मिलाकर कोय (भांखी कवच) बनती है । भांखी गहरे भरे रंग की होती है ।

    प्रकोप होने का समय (The time of the outbreak) :- नवजात इल्लियाँ अण्ड – गुच्छों से निकलकर एक ही पत्ती पर ही झुण्ड में रहकर पर्ण हरित खुरच कर खाती है । नवजात इल्लियाँ 5 – 7 दिनों तक झुण्ड में रहने के पश्चात् पहले उसी पौधे पर्येवाम बाद में अन्य पोधों पर फेल कर पूर्ण पत्तियाँ खाती है । जिससे पत्तियाँ पूर्णत: पर्ण हरित विहीन जालीनुमा हो जाती है । इल्लियों द्वारा खाने पर बनी जालीनुमा पत्तियों को दूर से ही देख कर पहचाना जा सकता है ।

    जीवन चक्र (Life Cycle) :- मादा शलभ अपने जीवन काल में 3 – 5 अण्ड गुच्छों में 500 से 1300 अण्डे पत्तियों की निचली सतह पर देती है । अण्डकाल 3 से 15 दिनों का होता है । शंखी से 9 – 15 दिनों में शलभ निकलती है । कीट 35 – 42 दिनों में एक जीवन चक्र पूर्ण करता है । कीट की साल भर में 8 पीढ़ियां होती है ।

    नियंत्रण (control) :- इल्ली के प्रारंभिक अवस्था के झुंड को इक्कठा कर नष्ट कर दें । आर्थिक क्षति स्तर से अधिक कीट प्रकोप होने पर कीटनाशक दवाई का छिड़काव करे ।

    8. सोयाबीन का फसल छेदक (हेलिकोवरपा आमीर्जेरा)

    पहचान (recognise) :- वयस्क शलभ मटमैला भूरा या हल्के कत्थाई रंग की जिसके अगले पंखों पर बादामी रंग की आड़ी – तिरछी रेखायें होती है । जबकि पिछले पंख रंग में सफेद तथा बहरी किनारों पर चौड़े काले (यकृति जैसे) धब्बे होते है । वयस्क शलभ दिन में पत्तियों में छिपी रहती है तथा रात में फसल पर भ्रमक करती है । अण्डे गोलाकार तथा चमकदार हरे – सफेद रंग के होते हैं अण्डों की सतह पर तिरछी धारियाँ पायी जाती है । अण्डे शुरू में चमकिले हरे – सफेद रंग के होते हैं जो इल्लियों के निकलने के एक दिन पहले काले हो जाते है । नवजात इल्लियाँ हरे रंग की होती है । पूर्ण विकसित इल्ली करीब 3.5 – 4 मि.मी. लम्बी होती है जिनके शरीर के बगल में गहरे पीले रंग की टूटी धारी होती है । सर हल्का भूरा होता है इल्ली का रंग अलग – अलग होता है ।

    प्रकोप होने का समय (The time of the outbreak) :- नवजात इल्लियाँ कली, फूल एवं फल्लियों को खाकर नष्ट करती है पर फल्लियों में दाने पड़ने के पश्चात इल्लियाँ फलली में छेद कर दाने खाकर आर्थिक रूप से हानी पहुँचती है । फलली के समय 3 – 6 इल्लियां प्रति मीटर होने पर सोयाबीन की पैदावार में 15 -90 प्रतिशत तक हानी होती है ।

    जीवन चक्र (Life Cycle) :- मादा शलभ रात्री में पत्तियों की निचली सतह पर एक एक कर 1200 से 1500 तकअण्डे देती है । अण्डाकाल 3 – 4 एवं इल्ली – काल 20 – 25 दिनों का होता है । पूर्ण विकसित इल्ली भूमि में गहराई में जाकर मिटटी में शंखी में परिवर्तित हो जाती है । शंख में परिवर्तित हो जाती है । शंखी कल 9 – 13 दिनों का होता है । कीट अपना एक जीवन चक्र 31 – 35 दिनों में पूर्ण करता है ।

    नियंत्रण (control) :- ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई कर इल्ली व शंखी को इक्कठा कर नष्ट करें (चने के इल्ली हेतु) फसल में 50 अंग्रेजी के टी (T) अथवा दोफनी आकर की खूंटियां (3 – 5 फीट ऊँची) पक्षियों के बैठने हेतु फसल की शुरआत से ही लगाये । जिन पर पक्षी बैठ कर इल्लियाँ खा सके । कीट दिखाई देने पर 12 फिरोमोन ट्रेप/ हे. के हिसाब से लगा दें ।

    रसायनिक नियंत्रण (Chemical control) पत्ती खाने वाली एवं फली छेदक इल्लियों के लिए :- अदि आर्तिक क्षति स्तर से अधिक नुकसान होता है , तो कीटनाशक दवाई का उपयोग करें , अचयनित दवाओं का उपयोग न करें । कीट बृद्धि नियंत्रण (आई.जी.आर.) जैसे डायलूबेंजुरान 25 डब्लू.पी. 350 ग्राम/ हे. या नोवेल्युरान 10 ई.सी. 375मि.ली.या लेफेयुरान 10 ई.सी. 500 मि.ली./ हे. अथवा जैविक कीट नाभाक, एन.पी.व्ही. 250 एल.ई./हे. अथवा डायपेल, वायोबिट या हाल्ट 1 किलो ग्राम / हे. या बयोरिन या लावोसेल 1 किलोग्राम/ हे. अथवा रासायनिक कीट नाभाक जैसे क्लोरापेरिफास 20 ई.सी. 1.5 ली. अ प्रोफेनोफाम 50 ई.सी. 1.2 ली. अ रायनेक्सीपार 10 एस.पी.100 मि.ली. या इमामेकिटन बेंजोएट 5 एस.जी. 180 ग्राम या मिथोमिल 40 एस.जी. 1000 मि.ली. या प्रोफेनेफास 500 ई. सी. 1.25 ली. अ लेम्बड़ा सायलोहेर्थिन 5 ई.सी. 300 मि.ली. या इनडोक्सकर्ब 14.8एस.एल. 300 मि.ली./ हे. के हिसाब से उपयोग करें । चूर्ण जैसे फैनवेलरेट 0.4 प्रतिशत 25 किलोग्राम/हे. के हिसाब से उपयोग करें ।

    9. सफेद मक्खी रस चूषक कीट


    पहचान (recognise) :- वयस्क कीट लगभग 1 मि.मी. लम्बा होता है । जिसके पंख सफेद – पीले रंग के होते है, जो मोमयुक्त पर्तदार पंखो वाली मक्खी होती है । अण्डे करीब 0.2 मि.मी. लम्बे, नाशपाती आकार के होते है, शंखी कलि नाशपाती आकार की होती है । अण्डो का रंग सफेद होता है । लेकिन निकलने के पहले ये भूरे या काले रंग के हो जाते है । निम्फ (भिभा) नाभापाती आकार के हलके पीले रंग के होते है । दूसरी एवं चौथी अवस्था में यह चल नही सकते है ।

    प्रकोप होने का समय (The time of the outbreak) :- इसका प्रकोप पौधे के एक पत्ती अवस्था से ही प्रारंभ हो जाता है । जो की फसल की हरी अवस्था तक प्रकोप करता रहता है । शिशुयेवाम वयस्क पौधे से रस चूसते हैं । यह पीला विषाणु रोग फैलता है, जो कि फसल की मुख्य समस्या है ।

    जीवन चक्र (Life Cycle) :- मादा मक्खी अपने जीवनकाल में 40 – 100 तक अण्डे देती है । जिसके रंग पीला एवं पत्तियों के निचली सतह पर देती है । शिशु अवस्था 7 – 14 दिनों की होती है वयस्क 8 – 14 दिनों में निकलते हैं । कीट का एक जीवन चक्र 13 – 62 दिनों तक होता है ।

    नियंत्रण (Control) :- पीला विषाणु रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला दें । बोनी के पहले बीज को थायोमेथाकसम 70 डब्लू.एस. 3 ग्राम/किलोग्राम या इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस.एल. 5 मि.ली./किलोग्राम की दर से बीजोपचार कर बोनी करें । फसल पर कीट का आक्रमण होने पर निम्नलिखित कोई एक कीट नाभाक दवा का छिड़काव करें । ट्रायाजोफांस 40 ई.सी. 800 – 1000 एम.एल. या थायमेथेक्जेम 25 डब्ल्यू.जी. 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस.एल. 200 मि.ली. या मेथाइल डेमेटान 25 ई.सी. 800मि.ली./हे. ।

    10. लाल मकड़ी (टेट्रानिक्स टेलारीयस) रस चूषक कीट

    पहचान (recognise) :- माइट या मकड़ी के वयस्क अंडाकार आकार के लाल या हरे रंग के 0.4 से 0.5 मि.मी. लम्बे बालों वाले एवं आठ टांगो वाले होते है । प्रथम अवस्था में 3 जोड़ी पैर होते है तथा रंग गुलाबी होता है । दिवतीय तथा तृतीय अवस्था में 4 जोड़ी पैर होते है । सभी अवस्था येपत्तीओं की निचली सतह पर सफेद महीन पारदशी झिल्ली के निचे पाई जाती है । अण्डे आकार में गोले,सफेद रंग तथा 0.1 मि.मी. की गोलाई लिये होते है ।

    प्रकोप होने का समय (The time of the outbreak) :- इसका प्रकोप सोया बीन फसल पर सामान्यत सितम्बर से अक्टूबर माह में विभोष कर कम वर्षा की स्थिति में ज्यादातर देखने को मिलता है । वयस्क तथा शिशु दोनों अवस्थाएं पौधों के तना, शाखा, फ्ल्लियां तथा पत्तियों का रस चूसकर हानी पहुंचाते है । प्रकोपित भागों पर पतली, सफेद एवं पारदर्शी झिल्ली पड़ी होती है । रस चूसने के कारण पत्तियों पर सफेद – क्त्थाई धब्बे बनतें है तथा पत्तियां प्रकोप के कारण मुरझा जाती है । प्रकोपित पौधों की ऊपज में 15 प्रतिशत तक कमी होती है । ग्रसित पौधे के दाने सिकुड़ जाते है तथा उनकी अंकुरण क्षमता अत्यधिक प्रभावित होती है ।

    जीवन चक्र (Life Cycle) :- मादा अलग – अलग करके पत्ती के निचले सतह पर लगभग 60 – 65 अण्डे देती है । 4 – 7 दिनों में अण्डों से शिशु निकलते है । और पौधों का रस चूसने लगते है । 6 – 10 दिनों के बाद शिशु से वयस्क बनते है । शिशु और वयस्क  एक महीन पारदर्शक जले से ढकी रहती है ।

    रसायनिक नियंत्रण (Chemical control) :- खड़ी फसल पर अत्याधिक प्रकोप होने पर ही निम्नलिखित कोई एक कीट नाभाक जैसे इथियान 50% ई.सी. 1.5 ली. या प्रोफेनोफास 50% ई.सी., या ट्रायाजोफांस 40 ई.सी. 800 मि.ली. या डायाफेनिथायूरान 50 डब्ल्यू.पी. 500 ग्राम प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करें ।

    11. सफेद सुण्डी (व्हाइट ग्रब) (होलोट्रोकिया कानसेगूंनिया)

    पहचान (recognise) :- भृंग का आकार में 7 मि.मी. चौड़ा तथा 18 मि.मी. लम्बा होता है । वयस्क भृंग नवविकसित अवस्था में पीले रंग का जो बाद में चमकदार तांबे जैसा हो जाता है । इल्ली या ग्रब (लट) अवस्था का रंग सफेद होता है । पूर्ण विकसित इल्ली का शरीर मोटा, रंग मटमैला – सफेद तथा आकार अंग्रेजी के “सी” अक्षर के समान मुदा होता है । जिनका सिर गहरे भरे रंग का तथा मुखांग मजबूत होता है ।

    प्रकोप होने का समय (The time of the outbreak) :- कीट के लट(इल्ली) एवं वयस्क दोनों अवस्था हानि पहुँचती है पर इल्ली अवस्था में फसलों को ज्यादा नुकसान पहुँचती है । वयस्क भृंग विभिन्न पौधों एवं कुछ झाड़ीनुमा वृक्षों की पत्तियाँ खाते है जबकि अण्डों से निकली नवजात इल्लियाँ शुरू में भूमि के अंदर पौधों की छोटी – छोटी जड़ों को खाती है तथा बड़ी होने पर मुख्य जड़ो को तेजी से काटती है । परिणामस्वरूप प्रकोपित पौधे पहले मुरझाते है फिर सुख कर नष्ट हो जाते है । जिससे खेतों में जगह – जगह घेरे बन जाते है । इल्ली एवं शंखी भूमि में पाई जाती है ।

    जीवन चक्र (Life Cycle) :- व्यस्क भृंग वर्षा ऋतू की शुरुआत में जून – जुलाई में भारी वर्षा होने पर अपनी सुसुप्तावस्था तोड़कर भूमि से बाहर एक साथ काफी संख्या में निकलते है । मद कीट भूरभूरी और नमी युक्त मृदा में 1 से 6 इंच की गहराई में पौधे के पास अण्डे देती है । अण्डे लगभग 30 – 50 दिन में उचित तापमान होने पर फूटते है । इल्ली (कोया) बनाकर भूमि के ऊपरी सतह पर सुसुप्तावस्था में रहते है । कीट वर्ष में अपना एक जीवन चक्र पूर्ण करता है ।

    कृषिगत नियंत्रण (Agricultural control) :- गर्मी में खेतों की गहरी जुताई एवं सफाई कर कीट की सुसुप्तावस्था तोड़ दें ।

    यांत्रिक नियंत्रण (Mechanical control) :- प्रकाश प्रपंच की सहायता से प्रौढ़ कीट को इक्कठा कर नष्ट कर दें ,

    जैविक नियंत्रण (biological control) :- बेबोरीया बेसीयाना और मेटारहिजीयम एनिसोपली 5 किलो ग्राम को गोबर की खाद या केचुए की खाद (2.5 कि.) के साथ मिश्रित कर खेत में फैला दें ।

    रसायनिक नियंत्रण (Chemical control) :- भूमि में फोरेट 10 जी 25 किलो / हे. के हिसाब से बुवाई के समय खेत मिला दें

    12. पौधे रोग , फफूंद द्वारा होने वाले रोग (Plant diseases, diseases caused by fungus)

    एरियल ब्लाइट

    रोगजनक : राइजोकटोनिया सोलेनाई

    लक्षण (Symptoms) :- इस बीमारी के लक्षण सर्वप्रथम घनी बोयी गयी फसल में, पौधे के निचले हिस्सों दिखाई देते है ।
    रोगग्रस्त पौधे पर्णदाग, पत्ती झुलसन अथवा पत्तियों का गिरना आदि लक्षण प्रदर्शित करते है ।
    पर्णदाग असामान्य पनीले धब्बों के रूप में दिखाई देते है, जो की बाद में भूरे या काले रंग में परिवर्तित हो जाते है एवं संपूर्ण पत्ती झुलस जाती है ।
    अधिक नमी की उपस्थिति में पत्तियां येसे प्रतीत होते है जैसे पानी में उबली गई हो ।
    पर्णवृंत, तना फली पर भी भूरे धब्बे दिखाई देते है ।
    फली एवं तानों के ऊतक संक्रमण पश्चात भूरे अथवा काले रंग के होकर सिकुड़ जाते है ।
    पौधों के रोगग्रस्त भागों पर नमी की उपस्थिति में सफेद और भूरे रंग की संरचनाए (स्क्लेरोशिया) दिखाई देती है

    अनुकूल परिस्थितियाँ (Favorable conditions) :-
    पुष्पनकाल के दौरान लंबे समय तक अधिक नमी एवं काम तापमान रहना, पास – पास बोयी गयी फसल, पौधों के जमीं पर गिर जाने पर, लगातार वर्षा की अवस्था तथा खराब जल निकास होना संक्रमण के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ होती हैं ।

    नियंत्रण (Control),,

    • गर्मी में गहरी जुताई करें ।
    • बीज उपचार द्वारा फसल को प्रारंभिक में रोगग्रस्त होने से बचाया जा सकता है । बीज उपचार थायरम + काब्रेंन्डाजिम (2:1) 2.5 – 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से करें ।
    • जल निकास अच्छा रखें ।
    • फसल की बुवाई अनुशंसित दुरी पर करें तथा ध्यान रहे खेत में पौध संख्या भी अत्यधिक नही होना चाहिये ।
    • पर्णीय छिड़काव के रूप में काब्रेंन्डाजिम का उपयोग 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से बुवाई के 45 से 60 दिन पर करें ।

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