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    प्याज की उन्नत खेती कैसे करे ? पड़े प्याज में उर्वरक , रोग , किट से बचाव व उन्नत तकनीक !!



    प्याज एक नकदी फसल है। प्याज एक महत्वपूर्ण सब्जी एवं मसाला फसल है। इसमें प्रोटीन एवं कुछ विटामिन भी अल्प मात्रा में रहते हैं। प्याज में बहुत से औषधीय गुण पाये जाते हैं। प्याज का सूप, अचार एवं सलाद के रूप में उपयोग किया जाता है। भारत के प्याज उत्पादक राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, उ.प्र., उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडू, म.प्र.,आन्ध्रप्रदेश एवं बिहार प्रमुख हैं। मध्यप्रदेश भारत का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक प्रदेश है। म.प्र. में प्याज की खेती खंण्डवा, शाजापुर, रतलाम छिंन्दवाड़ा, सागर, देवास एवं इन्दौर में मुख्य रूप से की जाती है। सामान्य रूप में सभी जिलों में प्याज की खेती की जाती है। भारत से प्याज का निर्यात मलेशिया, यू.ए.ई. कनाडा,जापान,लेबनान एवं कुवैत में निर्यात किया जाता है।

    प्याज के लिए उपयुक्त जलवायु (Climate suitable for onion) :-
    भारत में रबी तथा खरीफ दोनों ऋतुओं में प्याज उगाया जा सकता है। कंद निर्माण के पूर्व प्याज की फसल के लिए लगभग 210 से.ग्रे.तापक्रम उपयुक्त माना जाता है। जबकि शल्क कंदों में विकास के लिए 150 से.ग्रे. से 250 से.ग्रे.का तापक्रम उत्तम रहता है।


    प्याज के लिए उपयुक्त भूमि (Land suitable for onion) :-
    भूमि- प्याज सभी प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है जैसे कि रेतीली, दोमट, गाद दोमट और भारी मिट्टी। सफल प्याज की खेती के लिए सबसे अच्छी मिट्टी दोमट और जलोढ़ हैं जिसमें जल निकासी प्रवृत्ती के साथ अच्छी नमी धारण क्षमता और पर्याप्त कार्बनिक पदार्थ हो। भारी मिट्टी में उत्पादित प्याज खराब हो सकते हैं। वैसे भारी मिट्टी पर भी प्याज सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, अगर खेती के लिए क्षेत्र की तैयारी बहुत अच्छी हो और रोपण से पहले जैविक खाद का प्रयोग किया जाए। प्याज की फसल के लिए मृदा सामू इष्टतम 6.0 – 7.5 होना चाहिए, लेकिन प्याज हल्के क्षारीय मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। प्याज फसल अत्यधिक अम्लीय, क्षारीय और खारी मिट्टी और जल जमाव के लिए अधिक संवेदनशील है। प्याज 6.0 के नीचे सामू की मिट्टी में सूक्ष्म तत्व की कमी की वजह से या कभी-कभी एल्युमिनीयम या मैगनीज विषाक्तता होने के कारण कामयाब नहीं है।

    प्याज की उन्नत किस्में (Improved varieties of onions) :-


    (अ.) म.प्र में खरीफ प्याज की प्रमुख उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं-

    1.  एग्री फाउंड डार्क रेड
    विशेष - यह किस्म भारत में सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसके शल्क कन्द गोलाकार, 4-6 सेमी. आकार वाले, परिपक्वता अवधि 95-110, औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर। यह किस्म खरीफ प्याज(वर्षात की प्याज)उगाने के लिए अनुशंसित है।

    2. एन-53
    विशेष - भारत के सभी क्षेत्रों में उगाया जा सकता है, इसकी परिपक्वता अवधि 140 दिन, औसत उपज 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, इसे खरीफ प्याज (वर्षातकी प्याज) उगाने हेतु अनुशंसित किस्म हैं।

    3. भीमा सुपर
    विशेष - यह किस्म भी खरीफ एवं पिछेती खरीफ के लिये उपयुक्त है। यह किस्म 110-115 दिन में तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 250-300 क्विंटल तक उपज देती है।

    (ब.) रबी के सीजन में बोई जाने वाली किस्में -
    रबी मौसम :- एग्रीफाउण्ड लाईट रेड, एग्रीफाउण्ड डार्क रेड, अर्का कल्याण, अर्का निकेतन, पूसा साध्वी, पटना रेड, पूसा रेड, एन.- 53, नासिक रेड, बसन्त, पूना रेड, भीम रेड, भीमा सुपर, पूसा रतनार आदि प्रमुख है।

    (स.) म.प्र में रबी प्याज की प्रमुख उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं-
    रबी सीजन :- नर्मदा फुरसुंगी ,  फुरसुंगी , केशर सुपर फुरसुंगी , गुलाबी गोल्ड  आदि प्रमुख है
    यह किस्मे 100-115 दिन में तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 350-500 क्विंटल तक उपज देती है

    प्याज के लिए भूमि की तैयारी (Preparation of ground for onion) :-
    प्याज के सफल उत्पादन में भूमि की तैयारी का विशेष महत्व है। खेत की प्रथम जुताई मिट्‌टी पलटने वाले हल से करना चाहिए। इसके उपरान्त 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरा से करें, प्रत्येक जुताई के पश्चात्‌ पाटा अवश्य लगाएं जिससे नमी सुरक्षित रहे तथा साथ ही मिट्‌टी भुर-भुरी हो जाए। भूमि को सतह से 15 से.मी.उंचाई पर1.2 मीटर चौड़ी पट्‌टी पर रोपाई की जाती है अतः खेत को रेज्ड-बेड सिस्टम से तैयार किया जाना चाहिए।

    रासायनिक उर्वरक एवं पोषक तत्व (Chemical Fertilizers and Nutrients) :-
    प्याज की फसल को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। प्याज से भरपूर उत्पादन प्राप्त करने हेतु खाद एवं उर्वरकों का उपयोग मृदा परीक्षण की अनुशंसा के अनुसार करें।
    1. सामान्तया अच्छी फसल लेने के लिये 20-25 टन अच्छी सड़ी गोबर खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की अंतिम तैयारी के समय मिला दें। 
    2. इसके अलावा 110 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। नत्रजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की संपूर्ण मात्रा रोपाई के पहले खेत में मिला दें। नत्रजन की शेष मात्रा को 2 बरबर भागों में बांटकर रोपाई के 30 दिन तथा 45 दिन बाद छिड़कें। 
    3. इसके साथ-साथ गंधक (सल्फर) भी प्याज कन्द के तीखापन में सुधार लाने के लिए और प्याज का उत्पादन बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। 
    4. अगर गंधक स्तर 15 कि.ग्रा./हे. से ऊपर है, तब 30 कि.ग्रा./हे. और यदि यह 15 कि.ग्रा./हे. से नीचे है तब 45 कि.ग्रा./हे. गंधक का इस्तेमाल करना चाहिए।

    जैव उर्वरक (Bio fertilizer) :-
    जैविक उर्वरकों में सूक्ष्मजीव उपस्थित होते हैं। जैविक उर्वरकों का उपयोग बीज उपचार या फिर मिट्टी में डालने के लिए किया जाता है। जब इन्हें बीज या मिट्टी में डालते हैं, तब इनमें उपस्थित सूक्ष्म जीव नत्रजन स्थिरीकरण, फॉस्फोरस घुलनशीलता और दूसरे विकास वर्धक पदार्थों द्वारा प्राथमिक पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि करते है जिससे पौधों का विकास होता है। प्या.ल.अनु.नि. में किए गए प्रयोगों के आधार पर, जैविक उर्वरक ऐजोस्पाइरिलियम और फॉस्फोरस घोलने वाले जीवाणु की 5 कि.ग्रा./हे. की दर से प्याज फसल के लिए सिफारिश की गई है। ऐजोस्पाइरिलियम जैविक नत्रजन स्थिरीकरण द्वारा मिट्टी में नत्रजन की उपलब्धता को बढ़ाते हैं और फास्फोरस घोलने वाले जीवाणु के इस्तेमाल से मृदा में मौजूद अनुपलब्ध फॉस्फोरस पौधों के लिए उपलब्ध होते हैं जिससे फास्फोरस उर्वरकों की क्षमता बढ़ती है।

    प्याज की अच्छी उपज हेतु घुलनशील उर्वरकों का पर्णीय छिड़काव (Foliar spraying of soluble fertilizers for good onion yield) :-

    1. यदि वानस्पतिक वृद्धि कम हो तो 19:19:19 पानी मे घुलनशील उर्वरक 5 ग्राम प्रति लीटर पानी मे घोलकर रोपाई के 15, 30 एवं 45 दिन बाद छिडकाव करें। 
    2. अच्छी उपज व गुणवत्ता के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों का मिश्रण 1 ग्राम प्रति लीटर पानी मे घोलकर रोपाई के 45 और 60 दिन बाद छिड़काव करें।
    3. इसके बाद 13:0:45 पानी मेे घुलनशील उर्वरक 5 ग्राम प्रति लीटर पानी मे घोलकर रोपाई के 60, 75 एवं 90 दिन बाद छिड़काव करें।

    पौध की नर्सरी तैयार करना (Nursery Plant preparation) :-
    पौधशाला के लिए चुनी हुई जगह की पहले जुताई करें इसके पश्चात्‌ उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट डालना चाहिए। पौधशाला का आकार 3 मीटर*0.75 मीटर रखा जाता हैं और दो क्यारियों के बीच 60-70 सेमी. की दूरी रखी जाती हैं जिससे कृषि कार्य आसानी से किये जा सके। पौधशाला के लिए रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है, पौध शैय्या लगभग 15 सेमी. जमीन से ऊँचाई पर बनाना चाहिए बुवाई के बाद शैय्या में बीजों को 2-3 सेमी. मोटी सतह जिसमें छनी हुई महीन मृदा एवं सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद से ढंक देना चाहिए। बुवाई से पूर्व शैय्या को 250 गेज पालीथीन द्वारा सौर्यकरण उपचारित कर लें।

    बीजों को हमेशा पंक्तियों में बोना चाहिए। खरीफ मौसम की फसल के लिए 5-7 सेमी. लाइन से लाइन की दूरी रखते हैं। इसके पश्चात्‌ क्यारियों पर कम्पोस्ट, सूखी घास की पलवार(मल्चिंग) बिछा देते हैं जिससे भूमि में नमी संरक्षण हो सके। पौधशाला में अंकुरण हो जाने के बाद पलवार हटा देना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाये कि पौधशाला की सिंचाई पहले फब्बारे से करना चाहिए। पौधों को अधिक वर्षा से बचाने के लिए पौधशाला या रोपणी को पॉलीटेनल में उगाना उपयुक्त होगा।

    नर्सरी में बीज की बोआई का समय (Seed sowing time in nursery) :-

    बोआई का समय - खरीफ प्याज के लिए बीज की बोआई पूरे जून महीने में की जाती है और
    रबी प्याज के लिए मध्य अक्टूबर से नवम्बर में बोआई की जाती है !

    बीज की मात्रा - रबी में प्रति हेक्टर रोपाई के लिए 8 से 10 किलो की आवश्यकता होती है ।
    जबकि खरीफ ,  में 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती हैं !

    पौध रोपण - रोपाई के लिए पौध का चयन करते समय ऊचित ध्यान रखें। कम और अधिक आयु के पौध रोपाई के लिए नहीं लें। रोपाई के समय पौध के शीर्ष का एक तिहाई भाग काट दें जिससे उनकी अच्छी स्थापना हो सके। प्याज की पौध स्थापना के दौरान फफूंदी संबंधी रोगों की घटनाओं को कम करने के लिए पौध की जड़ों कों कार्बेण्डाजिम घोल (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) में दो घंटें के लिए डुबाने के बाद रोपित किया जाये। रोपाई के समय पंक्तियों के बीच 15 सें.मी. और पौधों के बीच 10 सें.मी. इष्टतम अंतर हो।

    रोपाई का समय (Transplanting time) :-
    खरीफ - मौसम हेतु पौधशाला शैय्या पर बीजों की पंक्तियों में रोपाई 1-15 जून तक कर देना चाहिए,
    रबी - सीजन के लिए रोपाई 15 दिसंबर से 10 जनवरी के बीच करना उत्तम होता है
    जब पौध 45 दिन की हो जाएं तो उसकी रोपाई कर देना उत्तम माना जाता है।

    पौध की रोपाई के लिए अच्छे से खेत तैयार करना चाहिए, (मिट्टी में ढेले नही होना चाहिए)

    खरपतवार नियंत्रण (weed control) :-
    फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए कुल 3 से 4 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। प्याज के पौधे एक-दूसरे के नजदीक लगाये जाते है तथा इनकी जड़ें भी उथली रहती है अतः खरपतवार नष्ट करने के लिए रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया जाना उचित होता है। इसके लिए पैन्डीमैथेलिन 2.5 से 3.5 लीटर/हेक्टेयर अथवा ऑक्सीफ्लोरोफेन 600-1000 मिली/हेक्टेयर खरपतवार नाशक पौध की रोपाई के 3 दिन पश्चात 750 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना बहुत प्रभावी और उपयुक्त पाया गया है।


    सिंचाई एवं जल निकास (Irrigation and drainage) :-
    सिंचाई- मौसम, मिट्टी का प्रकार, सिंचाई की विधि और फसल की आयु पर प्याज में सिंचाई की आवश्यकता निर्भर करती है। आम तौर पर रोपाई के समय, रोपाई से तीन दिनों बाद और मिट्टी की नमी के आधार पर 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जरूरत होती है। खरीफ फसल में 5-8 बार, पिछेती खरीफ फसल में 10-12 बार और रबी की फसल में 12-15 बार सिंचाई की जरूरत है। प्याज एक उथले जड़ की फसल है जिसकी उचित वृद्धि और कन्द विकास हेतु इष्टतम मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए लगातार हल्के सिंचाई की जरूरत होती है। फसल परिपक्व होने के पश्चात (फसल कटाई से 10-15 दिन पहले) सिंचाई बंद करनी चाहिए। इससे भंडारण के दौरान सडऩ को कम करने में मदद मिलती है। अतिरिक्त सिंचाई प्याज की फसल के लिए हानिकारक होती है तथा शुष्क समय के बाद सिंचाई करने से दुफाड कन्द बनते है।
    खरीफ मौसम की फसल में रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई करना चाहिए अन्यथा सिंचाई में देरी से पौधे मरने की संभावना बढ़ जाती हैं। खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्याज की फसल को जब मानसून चला जाता है उस समय सिंचाईयाँ आवश्यकतानुसार करना चाहिएं। इस बात का ध्यान रखा जाए कि शल्ककंद निर्माण के समय पानी की कमी नहीं होना चाहिए क्योंकि यह प्याज फसल की क्रान्तिक अवस्था होती है क्योंकि इस अवस्था में पानी की कमी के कारण उपज में भारी कमी हो जाती है, जबकि अधिक मात्रा में पानी बैंगनी धब्बा(पर्पिल ब्लाच) रोग को आमंत्रित करता है। काफी लम्बे समय तक खेत को सूखा नहीं रखना चाहिए अन्यथा शल्ककंद फट जाएंगे एवं फसल जल्दी आ जाएगी, परिणामस्वरूप उत्पादन कम प्राप्त होगा। अतः आवश्यकतानुसार 8-10 दिन के अंतराल से हल्की सिंचाई करना चाहिए।

    यदि अधिक वर्षा या अन्य कारण से खेत में पानी रूक जाए तो उसे शीघ्र निकालने की व्यवस्था करना चाहिए अन्यथा फसल में फफूंदी जनित रोग लगने की संभावना बढ़ जाती हैं।

    कीट और रोग नियंत्रण (Pest and Disease Control) :-
    1. थ्रिप्स (पर्ण जिव)
    ये कीट पत्तियों का रस चूसते हैं जिसके कारण पत्तियों पर चमकीली चांदी जैसी धारियां या भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। ये बहुत छोटे पीले या सफेद रंग के कीट होते हैं जो मुख्य रूप से पत्तियों के आधार या पत्तियों के मध्य में घूमते हैं।
    नियंत्रण :-
    इसके नियंत्रण हेतु नीम तेल आधारित कीटनाशियों का छिड़काव करें या इमीडाक्लोप्रि कीटनाशी 17.8 एस.एल. दवा की मात्रा 125 मिली./हे. 500-600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। आवश्यक हो तो 10 से 15 दिन बाद फिर दोहराएं
    थ्रिप्स का प्रभाव ज्यादा होने पर फिप्रोनिल (Fipronil 5% SC Insecticide) 200 से 250 लीटर पानी में 250mg मिलाकर कर हर 15 दिन के अंतराल पर प्रति एकड़ छिड़काव करें 

    2. माइट -
    इस कीट के प्रकोप के कारण पत्तियों पर धब्बों का निर्माण हो जाता हैं और पौधे बौने रह जाते हैं। इसके नियंत्रण हेतु 0.05: डाइमेथोएट दवा का छिड़काव करें।
    नियंत्रण :-
    यह एक फफूंदी जनित रोग है, इस रोग का प्रकोप दो परिस्थितियों में अधिक होता है पहला अधिक वर्षा के कारण दूसरा पौधों को अधिक समीप रोपने से पत्तियों पर बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं। परिणामस्वरूप पौधों की बढ़वार एवं विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

    3. बैंगनी धब्बा(परपल ब्लॉच) -
    लक्षण - प्रायः यह बीमारी प्याज एवं लहसुन उगाने वाले सभी क्षेत्रों में पायी जाती है। इस बीमारी का कारण आल्टरनेरिया पोरी नामक कवक (फफूंद) है। यह रोग प्याज की पत्तियों, तनों तथा बीज डंठलों पर लगती है। रोग ग्रस्त भाग पर सफेद भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जिनका मध्य भाग बाद में बैंगनी रंग का हो जाता है। रोग के लक्षण के लगभग दो सप्ताह पश्चात इन बैंगनी धब्बों पर पृष्ठीय बीजाणुओं के बनने से ये काले रंग के दिखाई देते हैं। अनुकूल समय पर रोगग्रस्त पत्तियां झुलस जाती हैं तथा पत्ती और तने गिर जाते हैं जिसके कारण कन्द और बीज नहीं बन पाते।

    बैंगनी धब्बा रोग की रोकथाम :-
    1. अच्छी रोग प्रतिरोधक प्रजाति के बीज का प्रयोग करना चाहिए।
    2. 2-3 साल का फसल-चक्र अपनाना चाहिए। प्याज से संबंधित चक्र शामिल नहीं करना चाहिए।
    3. पौध की रोपाई के 45 दिन बाद 0.25 प्रतिशत डाइथेन एम-45 या सिक्सर या 0.2 प्रतिशत धानुकाप या ब्लाइटाक्स-50 को चिपकने वाली दवा मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। यदि बीमारी का प्रकोप ज्यादा हो तो छिड़काव 3-4 बार प्रत्येक 10-15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए।

    4. आर्द्रगलन (डैम्पिंग आफ) -
    यह बीमारी प्रायः हर जगह जहां प्याज की पौध उगायी जाती है, मिलती है व मुख्य रूप से पीथियम, फ्यूजेरियम तथा राइजोक्टोनिया कवकों द्वारा होती है। इस बीमारी का प्रकोप खरीफ मौसम में ज्यादा होता है क्योंकि उस समय तापमान तथा आर्दता ज्यादा होते । यह रोग दो अवस्थाओं में होता है:
    बीज में अंकुर निकलने के तुरन्त बाद, उसमें सड़न रोग लग जाता है जिससे पौध जमीन से ऊपर आने से पहले ही मर जाती है। बीज अंकुरण के 10-15 दिन बाद जब पौध जमीन की सतह से उपर निकल आती है तो इस रोग का प्रकोप दिखता है। पौध के जमीन की सतह पर लगे हुए स्थान पर सड़न दिखाई देती है और आगे पौध उसी सतह से गिरकर मर जाती है।

    आर्द्रगल की रोकथाम -
    1. बुवाई के लिए स्वस्थ बीज का चुनाव करना चाहिए।
    2. बुवाई से पूर्व बीज को थाइरम या कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा बीज की दर से उपचारित करें।
    3. पौध शैय्या के उपरी भाग की मृदा में थाइरम के घोल (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) या बाविस्टीन के घोल (1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी) से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए।
    4. जड़ और जमीन को ट्राइकोडर्मा विरडी के घोल (5.0 ग्राम प्रति लीटर पानी) से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए।
    5. पानी का प्रयोग कम करना चाहिए। खरीफ मौसम में पौधशाला की क्यारियां जमीन की सतह से उठी हुई बनायें जिससे कि पानी इकट्ठा न हो।
    5.  झुलसा रोग (स्टेमफीलियम ब्लाइट) -
    लक्षण - यह रोग स्टेमफीलियम बेसिकेरियम नामक कवक द्वारा फैलता है। यह रोग पत्तियों और बीज के डंठलों पर पहले छोटे-छोटे सफेद और हलके पीले धब्बों के रूप में पाया जाता है । बाद में यह धब्बे एक-दूसरे से मिलकर बड़े भूरे रंग के धब्बों में बदल जाते हैं और अन्त में ये गहरे भूरे या काले रंग के हो जाते हैं। पत्तियां धीरे-धीरे सिरे की तरफ से सूखना शुरू करती हैं और आधार की तरफ बढ़कर पूरी सूख कर जल जाती हैं और कन्दों का विकास नहीं हो पाता।

    रोकथाम -
    1. स्वस्थ एवं अच्छी प्रजाति के बीज का प्रयोग करना चाहिए।
    2. लम्बा फसल-चक्र अपनाना चाहिए।
    3. पौध की रोपाई के 45 दिनों के बाद 0.25 प्रतिशत मैनकोजेब (डाइथेन एम-45) या सिक्सर (डाइथेन एम-45 $कार्बन्डाजिम)अथवा 0.2-0.3 प्रतिशत कॉपर
    4. आक्सीक्लोराइड (ब्लाइटाक्स- 50) का छिड़काव प्रत्येक 15 दिन के अन्तराल पर 3-4 बार करना चाहिए।
    5. जैविक विधियों का प्रयोग करना चाहिए।
    6. जड़ सडन रोग -
    इसके लिए कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करे उसके साथ साथ रोपाई के समय 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लिटर पानी में पौध को उपचारित करे।

    7. अंगमारी -
    पत्तियों पर सफेद धब्बे बाद में पीले पड़ जाते है , इसकी रोकथाम के लिए मेन्कोजेब या जाइनेब 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

    कंद की खुदाई (Rhizome digging) :-
    खरीफ प्याज की फसल लगभग 5 माह में नवम्बर-दिसम्बर माह में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। जैसे ही प्याज की गाँठ अपना पूरा आकर ले लेती है और पत्तियां सूखने लगें तो लगभग 10-15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए और प्याज के पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल देना चाहिए। इससे कंद ठोस हो जाते हैं और उनकी वृद्धि रूक जाती है। इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही कतारों में ही रखकर सुखाते है।

    उपज (Yield) :-
    खरीफ - प्याज की प्रति हेक्टेयर उपज 250-300 क्विंटल तक मिल जाती है।
    रबी - प्याज की प्रति हेक्टेयर उपज 350-500 क्विंटल तक मिल जाती है।


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