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    टमाटर की उन्नत फसल लेने के लिए किसानों को अपनानी चाहिए ये तकनीक (Farmers should adopt this technique to take advanced tomato crops)


    किसानों को टमाटर की उन्नत फसल लेने के लिए इस तकनीक को अपनाना चाहिए (Farmers should adopt this technique to take advanced tomato crops)

    खेत की तैयारी (Field preparation)
    खेत की चार-पांच बार जुताई करने के पश्चात पाटा चलाकर भूमि को नरम, भुरभुरी एवं समतल कर लेना चाहिये। भूमि को तैयार करते समय 15-20 टन प्रति हेक्टेयर गोबर या कम्पोस्ट की पकी हुई खाद का प्रयोग करना चाहिये ।

    उन्नत किस्मे (Advanced variety)
    अश्विन, धनराज, अर्क सम्राट, अर्क रक्षक, बलवान, फ़ाइटर, सरताज, क्रांति, बीएसएस श्रुंखला (803, 817, 825, 875, 834, 906, 908, 874, 1008 , 1006) कावेरी, टीएच -1, टीएच-802, टीएच 2312, पंजाब उप्मा , कैस्ल रॉक, पंजाब एनआर -7 , पंजाब केसरी, पंजाब छुहारा , ट्रौपिक, सौरभ , निर्मल, कनक, गदर, यौधा । हमेशा प्रमाणित बीज ही खरीदें । बिल हमेशा मांगे ।

    बीज उपचार (Seed treatment)
    बुवाई से पहले बीज को कारबेंडाजिम (बाविस्टीन, माविस्टीन)1 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें। रसायनिक उपचार के बाद बीज को ट्राईकोडर्मा 5 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित कर छाया में सुखाकर रोपाई करें।

    नर्सरी प्रबंधन (Nursery management)
    1. क्यारियों की लंबाई 3 मी., चौड़ाई 1 मी. एवं ऊंचाई 10-15 से.मी. होनी चाहिये ।
    2. दो नर्सरी क्यारियों के बीच की दूरी 75-90 से.मी. होनी चाहिये, ताकि नर्सरी के अंदर निराई, गुड़ाई एवं सिंचाई जैसी अंतरशस्य क्रियाएं आसानी से की जा सके ।
    3. नर्सरी क्यारियों की सतह चिकनी (भुरभुरी) अच्छी तहर से समतल, ऊंची एवं उचित जल निकास वाली होनी चाहिये । 4) अंकुरण के बाद पौध को कीट से बचाव हेतु फोरेट 10-15 ग्राम प्रति 10 वर्गमीटर पर कतारो के मध्य डालकर हल्की सिंचाई करें।

    बीजाई का तरीका व समय (Method and timing of sowing)
    1. पौध रोपाई- 3×1 मीटर की क्यारी बनाएँ। 
    2. पौधे से पौधे की दूरी 45-60cm और कतार से कतार की दूरी 75-90 cm हो। 
    3. पौध रोपाई शाम के समय करे इससे पौध नुकसान कम होता हैं। 
    4. पौध रोपाई से पूर्व 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा को 50 किलो सड़ी गोबर खाद में मिलाकर डालने से फ़्यूसेरियम विल्ट से बचाव किया जा सकता है। 
    5. पौधे की रोपाई करने के पूर्व पौधों को न्यूवाक्रॉन 15 मि.ली. प्रति लीटर और डॉयथेन एम-45 का 2-3 ग्राम प्रति लीटर की दर से मिश्रित मात्रा का 10 ली. पानी में घोल बनाकर 5-6 मिनट डूबाकर खेत में रोपाई करनी चाहिये।
    बीज दर (Seed rate)
    एक एकड़ भूमि के लिये 100 से 120 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।


    खरपतवार नियंत्रण (weed control)
    यंत्रकीय नियंत्रण (Mechanical control),,,-- खरपतवार जमीन से पोषक तत्व ले कर उपज में कमी कर देते हैं। और ये कीट व बीमारियों को शरण भी देते हैं। खरपतवार के नियंत्रण के लिए फसल मे 2-3 निराई गुड़ाई ज़रूरी है। पहली निराई पौध रोपाई के 45 दिन बाद करने से खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। संपूर्ण नियंत्रण करने के लिये मल्च जैसे पैरा, लकड़ी का बुरादा और काले रंग का पॉलीथीन का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही मल्च भूमि में नमी का संरक्षण करके उत्पादन व गुणवत्ता को बढ़ता है।

    रासायनिक नियंत्रण (Chemical control),,,- रासायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतु पेंडिमेथलिन (स्टोम्प/दोस्त) 400मि.ली/एकड़। इन्हें खरपतवार मिट्टी से बाहर निकलने से पहले छिड़कें। 200 लीटर पानी/एकड़ इस्तेमाल करें व खरपतवारनाशकों को फ्लैट फैन नोज़ल या फ़्लड जेट नोज़ल से छिड़कें।

    शस्य क्रियाएं (Cropping operations)
    प्रायः निराई एवं गुडाई कतारो के मध्य ही की जाती है।
    प्रतानों के निकलने के पूर्व नाईट्रोजन की शेष बची हुई मात्रा को गुड़ाई करने के साथ भूमि में मिलाये। खेत में बड़े खरपतवार उग आने पर उन्हें हाथों से उखाड़कर अलग कर देना चाहिये।
    टमाटर तापमान बदलने से उपज घटती है। लगातार फल प्राप्ति हेतु 10gm पैरा-क्लोरो फिनोक्सी एसिटिक एसिड(PCPA)/200Ltr पानी,फूल आते समय छिड़के।

    सहारा देना (to give support)
    1. यह अंतरशस्य क्रिया, पौधे की रोपाई के 2-3 सप्ताह के अंतराल से की जाती है।
    2. पौधे को निश्चित समय पर सहारा देने से अधिक उत्पादन एवं उत्तम गुणवत्ता वाले फल प्राप्त होते है ।
    3. असीमित वृद्धि वाली फसल के लिये कतार के समानांतर बांस की खूटी को गड़ाकर उसमें दो या तीन तार को खींचकर बाँध दिया जाता है। इन तारों पर पौधों को सुतली या रस्सी के सहारे बाँध दिया जाता है।

    खाद एवं उर्वरक (Manures and Fertilizers)
    (1). ऑरगेनिक: मल्टीप्लायर विशेष ,,,-- टमाटर की फसल में टनेज बहुत ज़्यादा निकलता है ,इसीलिए उसे खाद भी ज़्यादा लगेगा  जब तक उत्पादन लेना है, हर महीने एक किलो मल्टीप्लायर ज़मीन से देना है, मल्टीप्लायर जमीन से देने का तरीका अलग से बताया गया है. 250 ग्राम प्रति एकड़ हर सप्ताह देना है
    छिड़काव से फसल पर ज्यादा अच्छा और तुरंत परिणाम मिलता है, इसलिए जमीन से देने के साथ-साथ प्रति सप्ताह १५ लीटर पानी में 20 ग्राम मल्टीप्लायर + २ मिली ऑल क्लियर मिलाकर छिड़काव करें, आवश्यकतानुसार किट नाशक, फफूंद नाशक भी मिला सकते हैं.
    मल्टीप्लायर का इस्तेमाल करने के कारण फसल को बढ़ाने के लिए, पत्तों को गहरे हरे रंग का बनाने के लिए, दूसरे किसी उत्पादन की आवश्यकता नहीं पड़ती.

    टमाटर में अर्ली ब्लाइट, लेट ब्लाइट, रोग पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं, साथ साथ रस चूसनेवाले कीड़े भी कभी-कभी नियंत्रण में नहीं आते, ऐसी स्थिति में किसान पौधों को निकालने का निर्णय ले लेता हैं, मल्टीप्लायर के साथ खेती करनेवाले किसान भाइयों को यह समस्या आने की संभावना कम से कम होती है, क्योंकि, मल्टीप्लायर फसल को बलवान बनाता है इसलिए उस पर किटक तथा रोगों का अटेक कम होता है, अगर होता भी है, तब ऑल क्लियर रासायनिक दवाओं की प्रतिकारशक्ति कीटकों में नहीं आने देता, इसलिए १५ लीटर पानी में सिर्फ २ मिली ऑल क्लियर प्रत्येक छिड़काव में डालना जरुरी है.
    (नोट :- रासायनिक खाद एकदम से बंद नहीं करना है, उसका प्रमाण २० प्रतिसत कम करिये, जब आपको उत्पादन बढ़कर मिले, तब अगली फसल में रासायनिक खाद और कम करिये, कुछ सालों में आपका रासायनिक खाद शून्य हो जायेगा)

    (2). रासायनिक उर्वरक (Chemical fertilizer),,-- 
    एन पी के ;- 80 किलो : 40किलो : 40 किलो प्रति एकड़ (175 किलो यूरिया, 250 किलो एस एस पी और 68 किलो पोटाश) डाले। नाइट्रोजन की अधिक मात्रा 88 किलो यूरिया और फोस्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के समय डालें। और आधी बची नाइट्रोजन की मात्रा तीन भागो में 20 दिन के अंतराल पर डालें।
    (नोट :- लगातार रासायनिक खाद के इस्तेमाल के कारण मिटटी से उत्पन्न होनेवाले रोगों का प्रमाण बढ़ गया है, उससे निजात पाने के लिए कंपनी द्वारा बताये अनुसार खेत में बनाकर ट्राइकोडर्मा ट्रीटमेंट करें, ५ एकड़ ट्रीटमेंट का खर्च २५० रुपये आता है.)

    (3). जैविक खाद (Organic manure),,-- बुवाई से पहले 7-10टन अच्छी तरह सड़ा गोबर या 8-10 टन केंचुआ खाद प्रति एकड़ डालें।
    उक्ठा रोग रोकने हेतु 2 किलो ट्राइकोडर्मा 100 किलो गोबर की सड़ी खाद प्रति एकड़ से दोनों को मिलाकर खेत मे बिखेरकर जुताई करते समय मिलाएँ। सूत्रकृमि व दूसरे कीट की रोकथाम के लिए जिनका बरसात के समय ज्यादा प्रकोप होता हैं। 40 किलो नीम केक प्रति एकड़ की दर से अंतिम जुताई के समय डालें।
    (4). फर्टिगेशन (Fertigation),,,--
    1. पौध रोपाई करते समय एन पी के 1.5 किलो प्रति एकड़ पर दिन 10 दिन तक डालें। 
    2. फूल बनने से फल बनने तक 12:61:00 @0.4किलो प्रति एकड़ पर दिन 10 दिन तक डालें। 
    3. 13:00:45 @0.6 प्रति एकड़ पर दिन और यूरिया @0.8 किलो प्रति एकड़ पर दिन 20 दिन तक डालें ।
    (5). पानी में घुलनशील खाद (Water soluble manure),,--
    1. खाद प्रबंधन- रोपाई के 10-15 दिन बाद 19:19:19 के साथ सूक्ष्म पोशक तत्व @2.5 से 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में छिड़कें। 
    2. पौध रोपाई के 40-45 दिन बाद बोरॉन 20% 1 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़कें। 
    3. फल की अच्छी गुणवत्ता और उपज हेतु पानी में घुलनशील खाद 12:61:00 @10ग्राम प्रति लीटर पानी से फूल आने से पहले छिड़कें। 
    4. फसल के फूल अवस्था पर 00:52:34 @ 4-5 ग्राम + बोरॉन @ 1ग्राम प्रति लीटर पानी से छिड़कें।
    5. फसल के फल अवस्था पर 00:52:34 @ 4-5 ग्राम + बोरॉन @ 1ग्राम प्रति लीटर पानी से छिड़कें।
    6. टमाटर:छोटे/ज़्यादा जड़ों वाली पौध लेने हेतु 4-5पत्ती वाली अवस्था मे क्लोरोमेकुएट(लिहोसिन)@1ml/Ltrके साथछिड़के।इससे फूल जल्दी व फल ज़्यादा आएंगे
    7. टमाटर: स्वस्थ पनीरी व रोपाई के झटके से बचाव हेतु 1ml विपुल बूस्टर/Ltr पानी के हिसाब से छिड़कें और रोपाई से 1सप्ताह पहले पानी न लगाएँ।


    पोषक तत्वों की कमी के लक्षण व नियंत्रण (Nutritional deficiency symptoms and control)
    1. नाइट्रोजन की कमी पहले पुराने और नीचे के पत्तोँ पर नज़र आती है।पत्ते नोक से नीचे की तरफ पीले पड़ते हुए आगे की तरफ को पीले होते है। इसकी पूर्ति हेतु यूरिया के 2किलो घोल को प्रति एकड़ की दर से 150 लीटर पानी के साथ मिलकर छिड़कें।
    2. बोरॉन की कमी से सिरे के पत्ते टूट जाते है,पत्ते के किनारे पीले पड़ जाते है, पत्ते मोटे व भुर जाते है, फल बेढँगे और उन पर धारियाँ पड़ जाती है।बोरॉन की कमी ठीक करने के लिए 125-150 ग्राम चीलेटिड बोरॉन (सोल्यूबर) 150लीटर पानी के साथ या 0.2% बोरिक ऐसिड(200 ग्राम 100लीटर पानी में)छिड़के।
    3. कैलशियम की कमी से नये तने, फली के डंठल व पत्ते मुरझा जाते है। कमी की पूर्ति हेतु 125-150 ग्राम EDTA केल्शियम/एकड़/150लीटर पानी के साथ (1ग्राम/लीटर पानी) छिड़कें।
    4. पोटाशियम की कमी से पौधा तो ठीक लगता है पर पत्ते के किनारे सूखने शरू हो जाते है और पत्ते पर लाल भूरे धबबे पड़ जाते है। पोटेशियम की कमी की पूर्ति के लिए 100 ग्राम 13:0:45 (मल्टी-के) प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़कें और बाद में 50 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ डालें।
    5. फास्फोरस की कमी के लक्षण हैं बौने व पतले पौधे। पत्ते बिना चमक के, हल्के हरे रंग के। पुराने पत्ते मुरझाकर जल्दी गिर जाते हैं। इसे रोकने हेतु खाद की अनुमोदित मात्रा डालें, साथ में आंतरिक व बाह्य माइकोराइज़ा (रेलीगोल्ड/ग्रोमोर) 4 किलो ग्राम/एकड़ की दर से खेत तैयार करते वक़्त डालें। यदि खड़ी फसल में लक्षण नज़र आएं तो NPK 12-61-0 की 100 ग्राम मात्रा 15 लीटर पानी की दर से हफ्ते के अंतर पर 2 बार छिड़कें। ज़रूरत महसूस हो तो तीसरा छिड़काव करें।
    6. मैंगनीज़ की कमी की निशानीयाँ हैं- पत्तों की नसों के बीच में हल्के पीले सलेटी रंग के धब्बे, जो बाद में बड़े होकर मिल जाते हैं,और ज़्यादा कमी आने पर पौधा सूख जाता है। 1 किलो मैंगनीज़ सल्फेट 200 लीटर पानी में घोलकर एक छिड़काव पहले पानी से 2-4 दिन पहले करें और 3 छिड़काव हफ्ते-हफ्ते के अंतर पर धूप निकलने पर करें।
    ग्रोथ रेगुलेटर (Growth regulator)
    उपज बढ़ाने हेतु 50 मि.ली प्लेनोफ़िक्स/एकड़ 100 लीटर पानी (2.5मि.ली /10लीटर पानी) की दर से छिड़कें। इससे फूल आते समय फूलों का गिरना कम होता है व फलियों की संख्या बढ़ती है। इसकी अधिक मात्रा बिलकुल न छिड़कें।

    फूलो की संख्या बढाने और अच्छी उपज प्राप्त करने हेतु समुद्री शैवाल (बायोविटा/ बायोजाइम/ धनजाइम) 500 मि.ली मात्रा/150 लीटर पानी/एकड छिडकें। पौध को स्वस्थ व मजबूत करने हेतु जिससे रोपाई अच्छे से की जा सके , लिहोसिन @ 1मि.ली प्रति लीटर बुवाई के 20 दिन बाद छिड़कें।

    सिंचाई प्रबंधन (Irrigation management)
    1. फसल की प्रायः 8-12 दिनों के अंतराल से सिंचाई की जाती है ।
    2. ग्रीष्म ऋतु में फसल को 5-6 दिनों के अंतराल से सिंचाई की आवश्यक होती है ।
    3. प्रायः सिंचाई हेतु खुली नाली (ओपन फरो) विधि का प्रयोग किया जाता है ।
    4. ड्रीप एवं टपका विधि का उपयोग प्रायः ग्रीनहाऊस, कांचघर या प्लास्टिक हाऊस में किया जाता है।
    5. फूल व फल बनने के समय सिंचाई करना जरूरी होता है।

    कीट प्रबंधन (pest management)
    (1).पत्ती का सुरंगी कीट ,,- पत्तों का सुरंगी कीट पत्तियों मे चाँदी रंग की सुरंगे बनाकर उनके अंदर पत्ती खाता है।अधिक प्रकोप से विकास रुकता है व उपज घट जाती है।
    नियंत्रण,,- सुरंगी कीट एवं थ्रिप्स के प्रकोप से उपज का नुकसान रोकने हेतु लेंबडा साईहेलोथ्रिन (चार्ज/कराटे/मेटाडोर) 15मि.ली/15लीटर पानी का छिड़काव करें।

    (2). फल छेदक ,,- इस कीट के द्वारा हानि रोपाई के तुरन्त बाद से लेकर अंतिम तुड़ाई तक होती है। वयस्क मादा मक्खी पत्तियों की निचली सतह पर कलियों एवं फलों पर अडे़ देती है। बाद की अवस्था में इल्ली फलों में छेंद कर प्रवेश करती है और गूदे को खा जाती है।
    नियंत्रण,,- सड़े और संक्रमित फलों को नष्ट करें। फल छेदक के नियंत्रण हेतु रोपाई से 20 दिन पहले फेरोमोन ट्रेप 16 प्रति एकड़ बराबर की दूरी पर लगाए। यदि कीट संख्या अधिक हो तो स्पाइनोसेड़ (सक्सेस/ ट्रेसर)@6मि.ली + चिपचिपा पदार्थ @5 मि.ली प्रति 10 लीटर पानी और इंडोक्साकार्ब 14.5 एस सी (अवांट/ फिगो)200मि.ली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में छिड़कें।

    (3). माहु ,,- शिशु एवं वयस्को का समूह पत्तियों की निचली सतह पर चिपके हुये होते है, जो इनके ऊतको से रस चूसते है । ग्रसित भाग पीले होकर सिकुड़कर मुड़ जाते है। अत्यधिक आक्रमण की अवस्था में पत्तियाँ सूख जाती है व धारे-धीरे पौधा सूख जाता है।
    नियंत्रण,, - ग्रसित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिये ताकि यह कीट फैलने न पाये।
    साईपरमैथ्रिन 10 ई.सी.( साईपरवीर)250मि.ली और 40 मि.ली इमिड़ाक्लोप्रिड 17.8 SL (कोन्फ़िडोर/ टाटामिडा) और 40 ग्राम थायोमेथोक्सम 25 डबल्यूजी (एक्टारा/ अनंत/ अरेवा) प्रति एकड़/150 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

    (4). सफ़ेद मक्खी ,,- सफ़ेद मक्खी से वाइरस रोग फैलता है और फसल को अधिक हानि पहुंचाता है।
    नियंत्रण ,,- शुरुआती नियंत्रण के लिए संक्रमित पौधो को उखाड़कर खेत से हटाये। रसायनिक नियंत्रण के लिए एसिटामिप्रिड़ 20 एसपी (प्राइड) 6 ग्राम प्रति 15 लीटर और डाईफेंथ्रियूरोन 50 डबल्यूपी (पेगासास/ पोलो) 15 मि.ली प्रति 15 लीटर पानी की दर से छिड़कें।

    (5). थ्रिप्स ,,- थ्रिप्स पीला,भूरा बारीक पंखों वाला छोटा कीड़ा है।
    नियंत्रण ,,- थ्रिप्स की रोकथाम हेतु साईपरमैथ्रिन 10 ई.सी.( साईपरवीर)250मि.ली और 40 मि.ली इमिड़ाक्लोप्रिड 17.8 SL (कोन्फ़िडोर, टाटामिडा) और 40 ग्राम थायोमेथोक्सम 25 डबल्यूजी (एक्टारा/ अनंत/ अरेवा) प्रति एकड़/150 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

    (6). लाल मकड़ी ,,- लार्वा शिशु एवं वयस्क पत्तियों को निचली सतह को फाड़ कर खाते है।
    शिशु एवं वयस्क दोनों पत्तियों व लताओं के कोशिका रस को चूसते है, जिसके पत्तियों व लताओं पर सफेद रंग धब्बे विकसित हो जाते है।
    ग्रसित पत्तियाँ पीले रंग की हो जाती है बाद में गिर जाती है।
    अत्यधिक संक्रमण की अवस्था में पत्तियों की निचली सतह पर जालनुमा संरचना तैयार करके उन्हे हानि पहुंचाती है।
    नियंत्रण ,,- स्पाइरोमेसिफेन (ओबेरॉन) 100मि.ली और फेंजाक्विन 10% (मेजिस्टर/ डी ई 436) 160मि.ली प्रति B/150 लीटर पानी मे छिड़कें।

    कीट का यांत्रिक नियंत्रण (Mechanical control of insect),,--
    1. टमाटर की मेड़ों में लोबिया लगाने से कीटो की संख्या में कमी होती हैं साथ ही 1-2 छिड़काव ही रह जाते हैं। 
    2. अरंडी को खेत के चारो तरफ लगाने से पत्ती छेदक लट से बचा जा सकता है। इससे पत्ती छेदक कीट अरंडी पर आती फिर उसे आसानी से नष्ट किया जा सकता है।
    3. प्रत्येक 16 क़तार के मध्य एक कतार गैंदा की लगाएँ, इससे फूलों द्वारा आमदनी मिलेगी व 2000-3000 रुपयों का कीटनाशी खर्च/एकड़ बचेगा।

    (नोट :- मिश्रित खेती करने से भूमि का पूर्ण उपयोग होता हैं साथ अधिक मुनाफा भी मिलता हैं।)

    रोग प्रबंधन (Disease management)
    सूत्रककृमि  ,,- सूत्रकृमि के प्रकोप से पौधा अविकसित रह जाता है। जड़ें छोटी रह जाती है जिससे उत्पादन प्रभावित होता है।
    नियंत्रण ,,- नियंत्रण के लिये गर्मियों मे गहरी जुताई करे, प्रतिरोधी किस्म का चयन करें। रसायनिक नियंत्रण प्रकोप के अधार पर 10-15 किलो कार्बोफ्यूरान प्रति एकड़ का प्रयोग करे।

    तुड़ाई व छंटाई (Weeding and sorting)
    तुड़ाई ,,- फल तुड़ाई के लिये किस्मों के अनुसार रोपाई के 60-70 दिनों के बाद तैयार हो जाते है। तुड़ाई की अवस्था उपभोक्ता को फल की आवश्यकता के अनुसार की जाती है। फलों की तुड़ाई परिवहन व्यवस्था पर भी निर्भर करती है ।

    छंटाई ,,- फलों की छंटाई निम्न बिन्दुओं के आधार पर की जाती है। रंग, आकार, परिपक्वता की अवस्था
    छंटाई किये गये फलों की पैकिंग बाजार की दूरियों के आधार पर की जाती है। किसान द्वारा अपने स्तर पर छंटाई करने पर 5-8 % फलों को हानि पहुंचती है, अतः किसान को अपने स्तर पर छंटाई नहीं करना चाहिये ।


    पैकिंग और भंडारण (Packing and storage)

    1. टमाटर के भंडारण के लिये 12 से 15 डिग्री से. तापमान अच्छा माना जाता है। यदि फलों को शून्य डिग्री तापमान पर भंडारित किया जाता है तब फलों इनमें कम तापमान के द्वारा क्षति होती है।
    2. हरे फलों को 10-15 डिग्री से. तापमान पर 30 दिनों तक भंडारित कर सकते है।
    3. टमाटर के पके फलों को 4.5 डिग्री से. तापमान पर 10 दिनों तक सुरक्षित रख सकते है। 
    4. भंडारण के समय आपेक्षिक आर्द्रता 85-90 % होनी चाहिये।
    5. कमरे के तापमान पर फलों को 7-10 दिनों तक सुरक्षित रख सकते है।
    (नोट :- अधिक जानकारी के लिए अपने निकटतम कृषि विभाग के अधिकारियों से सम्पर्क करें )

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