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    धान की खेती की कुछ महत्वपूर्ण जानकारी जो आपको ,, लाभ दिलाने में बहुत उपयोगी होगी ..



    धान (Paddy / ओराय्ज़ा सैटिवा) एक प्रमुख फसल है जिससे चावल निकाला जाता है। यह भारत सहित एशिया एवं विश्व के बहुत से देशों का मुख्य भोजन है। विश्व में मक्का के बाद धान ही सबसे अधिक उत्पन्न होने वाला अनाज है।
    धान, भारत समेत कई एशियाई देशों की मुख्य खाद्य फसल है। इतना ही नहीं दुनिया में मक्का के बाद जो फसल सबसे ज्यादा बोई और उगाई जाती है वो धान ही है। करोड़ों किसान धान की खेती करते हैं। खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान लगभग पूरे भारत में लगाई जाती है। अगर कुछ बातों का शुरु से ही ध्यान रखा जाए तो धान की फसल ज्यादा मुनाफा देगी।

    धान की खेती की शुरुआत नर्सरी से होती है, इसलिए बीजों का अच्छा होना जरुरी है। कई बार किसान महंगा बीज-खाद तो लगाता है, लेकिन सही उपज नहीं मिल पाती है, इसलिए बुवाई से पहले बीज व खेत का उपचार कर लेना चाहिए। बीज महंगा होना जरुरी नहीं है बल्कि विश्वसनीय और आपके क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के मुताबिक होना चाहिए।
    !! आईये आज हम आप को धान की खेती से जुडी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी बताते है । जिसे पड़ कर आप धान की खेती में फयदा ले सकते है !!


    धान के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for paddy) :-
    ग्रीष्मकालीन जुताई करके दो से तीन बार कल्टीवेटर से जुताई करें एवं ढेलों को फोड़कर समतल करें एवं खेत में छोटी-छोटी पारे डालकर खेत तैयार करें।

    धान के लिए उपयुक्त भूमि (Land suitable for paddy) :-
    मध्यम काली मिट्टी एवं दोमट मिट्टी।

    बोवाई की पद्धति बीज की मात्रा (किलो/हेक्ट.) (Method of sowing Quantity of seed kg / ha.) :-
    धान की बीज की मात्रा बुवाई की पध्दति के अनुसार अलग-अलग रखी जाती है।
    1. छिटकवां विधि से बोने के लिये 40-48 ,
    2. कतार मे बीज बोने के लिये 36-40,
    3. लेही पध्दति में 28-32 किलो,
    4. रोपाई पध्दति में 12-16 किलों
    5. बियासी पध्दति में 48-60 किलो प्रति किलो/हेक्ट. उपयोग में लाया जाता है।

    धान की उन्नत किस्मे (Advanced varieties of paddy) :-

    (I.) अतिशीघ्र पकने वाली प्रजातियाँ (Early maturing species) :-
    1. सहभागी ,, पकने की अवधि 90-95 दिन , उपज क्वि./हे.) 30-40 ,
    विशेषताए :- छोटा पौधा, मध्यम पतला दाना
    उपयुक्त क्षेत्र :- असिंचित क्षेत्रों में बधांन रहित समतल व हल्के ढलान वाले खेतों के लिए व बिना बंधान वाले समतल बहुत हल्की भूमि वाले छोटे मेढ़ युक्त खेत कम वर्षा वाले क्षेत्र तथा देरी की बोवाई।
    2. दन्तेश्वरी ,, पकने की अवधि 90-95 दीन, उपज (क्वि./हे.) 40-50,
    विशेषताए :- छोटा पौधा, मध्यम आकार का दाना
    उपयुक्त क्षेत्र :- असिंचित क्षेत्रों में बधांन रहित समतल व हल्के ढलान वाले खेतों के लिए व बिना बंधान वाले समतल बहुत हल्की भूमि वाले छोटे मेढ़ युक्त खेत कम वर्षा वाले क्षेत्र तथा देरी की बोवाई।

    (II.) मध्यम अवधि में पकने वाली प्रजातियां (Medium ripening species) :-
    क्र. प्रजाति       अवधि (दिन) उपज (क्वि./हे.)  विशेषताएँ
    1 पूसा -1460 120-125          50-55 छोटा पतला दाना, छोटा पौधा
    2 डब्लू.जी.एल -32100  125-130   55-60 छोटा पतला दाना, छोटा पौधा
    3 पूसा सुगंध 4    120-125 40-45 लम्बा, पतला व सुगंधित दाना
    4 पूसा सुगंध 3     120-125 40-45 लम्बा, पतला व सुगंधित दाना
    5 एम.टी.यू-1010 110-115 50-55 पतला दाना, छोटा पौधा
    6 आई.आर.64     125-130             50-55 लम्बा पतला दाना, छोटा पौधा
    7 आई.आर.36      120-125            45-50 लम्बा पतला दाना, छोटा पौधा

    (III.) विभिन्न क्षेत्रों के लिये संकर प्रजातियां एंव उनकी विशेषताएँ (Hybrid species and their characteristics for different regions) :-
    क्र. प्रजाति  अवधि (दिन) उपज (क्वि./हे.)
    1 जे.आर.एच.-5      100.105       65.70
    2 जे.आर.एच.-8        95.100 60.65
    3 पी आर एच -10 120.125 55.60
    4 नरेन्द्र संकर धान-2 125.130 55.60
    5 सी.ओ.आर.एच.-2 120.125                 55.60
    6 सहयाद्री                 125.130 55.60

    (IV.)  प्राईवेट कम्पनियों की संकर प्रजातियां (Hybrid species of private companies) :-

    अराईज 6444,
    अराईज 6209,
    अराईज 6129 किसानों के बीच प्रचलित हैं।


    (V.) मध्यप्रदेश में उपलब्ध भूमि के अनुसार उपयुक्त प्रजातियों का चयन (Selection of suitable species according to available land in Madhya Pradesh) :-
    क्र खेतों की दिशाएँ उपयुक्त प्रजातियाँ संभावित जिले
    1. बिना बंधान वाले समतल/ हल्के ढालान वाले खेत
    किस्म :-पूर्णिमा, सहभागी, दंतेष्वरी
    जिले :- डिण्डौरी, मण्डला, सीधी, शहडोल, उमरिया
    2. हल्की बंधान वाले खेत व मध्यम भूमि
    किस्म :- जे.आर.201, जे.आर.345, पूर्णिमा, दंतेष्वरी डब्लू.जी.एल -32100, आई.आर.64
    जिले :- रीवा, सीधी, पन्ना, शहडोल, सतना, कटनी, छतरपुर, टीकमगढ़, ग्वालियर, बालाघाट, डिण्डौरी, मण्डला, कटनी
    3. हल्की बंधान वाले भारी भूमि
    किस्म :- पूर्णिमा, जे.आर.345, दंतेष्वरी
    जिले :- जबलपुर, सिवनी, दमोह, बालाघाट, मण्डला, डिण्डौरी, सतना, नरसिंहपुर, छिदंवाड़ा
    4. उँची बंधान वाले हल्की व मध्यम भूमि
    किस्म :- आई.आर.-36, एम.टी.यू-1010,दंतेष्वरी, डब्लू.जी.एल -32100
    जिले :- जबलपुर, सिवनी, दमोह, बालाघाट, मण्डला, डिण्डौरी, सतना, नरसिंहपुर, छिदंवाड़ाबीज की मात्रा

    बीजोपचार (Seed treatment) :-
    बीज को फफूंदनाशक दवा कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम/किग्रा बीज या कार्बेन्डाजिम + मैन्कोजेब 3 ग्राम/किग्रा बीज या कार्बोक्सिऩ + थायरम 3 ग्राम/किग्रा बीज से उपचारित करें।

    धान की बुवाई का सही समय (Right time to sow paddy) :-
    वर्षा आरम्भ होते ही धान की बुवाई का कार्य आरम्भ कर देना चाहिये। जून मध्य से जुलाई प्रथम सप्ताह तक बोनी का समय सबसे उपयुक्त होता है।

    कतारों में बुवाई की विधि (Sowing method in The queues) :-

    कतारों में बोनी अच्छी तरह से तैयार खेत में निर्धारित बीज की मात्रा नारी हल या दुफन या सीडड्रील द्वारा 20 सें.मी. की दूरी की कतारों में बोनी करना चाहिए।

    रोपा विधि व सावधानी (Transplant Method and Precaution) :-

    • सामान्य तौर पर 2-3 सप्ताह के पौध रोपाई के लिये उपयुक्त होते हैं 
    • तथा एक जगह पर 2-3 पौध लगाना पर्याप्त होता है 
    • रोपाई में विलम्ब होने पर एक जगह पर 4-5 पौधे लगाना उचित होगा।

    धान की रोपाई के समय पौधो से पौधो की दूरी (Distance from plant to plant at the time of planting of paddy) :-

    1. जल्दी पकने वाली प्रजातियाँ उपयुक्त समय पर 15 × 15 (सें.मी. सें.मी.)
    2. मध्यम अवधि की प्रजातियाँ उपयुक्त समय पर 20 × 15 (सें.मी. सें.मी.)
    3. देर से पकने वाली प्रजातियाँ उपयुक्त समय पर 25 × 20 (सें.मी. सें.मी.)

    धान के लिए उपयुक्त उर्वरक व मात्रा (Suitable fertilizer and quantity for paddy) :-

    1. जैव उर्वरकों का उपयोग (Use of bio fertilizers) :-
    धान में एजोस्पिरिलियम या एजोटाबेक्टर एवं पी.एस.बी. जीवाणुओं की 5 किलो ग्राम को 50 किग्रा/हैक्टेयर सूखी सड़ी हूई गोबर की खाद में मिलाकर खेत मे मिला दें। धान के रोपित खेत में (20दिन रोपाई उपरांत) 15 किग्रा/हैक्टेयर नील हरित काई का भुरकाव 3 सेमी पानी की तह रखते हुए करें।

    2. पोषक तत्व प्रबंधन (Nutrient management) :-
    गोबर खाद या कम्पोस्ट - धान की फसल में 5 से 10 टन/हेक्टेयर तक अच्छी सडी गोबर की खाद या कम्पोस्ट का उपयोग करने से मंहगे उर्वरकों के उपयोग में बचत की जा सकती है।

    3. हरी खाद का उपयोग (Use of green manure) :- हरी खाद के लिये सनई ढेंचा का बीज 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रोपाई के एक महीना पहिले बोना चाहिये। लगभग एक महिने की खड़ी सनई की फसल को खेत में मचैआ करते समय मिला देना चाहिए।

    उर्वरकों का उपयोग व मात्रा (Use and quantity of fertilizers) :-

    धान की प्रजातियाँ उर्वरकों की मात्रा (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
    नत्रजनस्फुर पोटाश
    1. शीघ्र पकने वाली 100 दिन से कम में,
    उर्वरक मात्रा  40-50 (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
    नत्रजन 20.30 (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
    स्फुर पोटाश 15.20 (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
    2. मध्यम अवधि वाली 110-125दिन की,
    उर्वरक मात्रा 80-100 (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
    नत्रजन 30.40 (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
    स्फुर पोटाश 20.25 (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
    3. देर से पकने वाली 125 दिनों से अधिक,
    उर्वरक मात्रा 100-120 (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
    नत्रजन 50.60 (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
    स्फुर पोटाश 30.40 (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
    4. संकर प्रजातियाँ
    उर्वरक मात्रा 120 (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
    नत्रजन 70 (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
    स्फुर पोटाश 50 (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
    उपरोक्त मात्रा में प्रयोगों के परिणामों पर आधारित है किन्तु भूमि परीक्षण द्वारा उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण वांछित उत्पादन के लिये किया जाना लाभप्रद होगा।


    नत्रजन उर्वरक देने का समय व मात्रा (Time and quantity of nitrogen fertilizer) :-
    1. शिघ्र पकने वाली ,,
    • बीजू धान में निदाई करके या रोपाई के 6-7 दिनों बाद नत्रजन 50 किलो 20 दिन बाद
    • कंसे निकलते समय नत्रजन 25 किलो 35-40 दिन बाद
    • गभोट के प्रारम्भ काल में नत्रजन 25 किलो 50-60 दिन बाद
    2. मध्यम समय पकने वाली ,,
    • बीजू धान में निदाई करके या रोपाई के 6-7 दिनों बाद नत्रजन 30 किलो 20-25 दिन बाद
    • कंसे निकलते समय , नत्रजन 40 किलो 45-55 दिन बाद
    • गभोट के प्रारम्भ काल में नत्रजन 30 किलो 60-70 दिन बाद
    3. देर से पकने वाली ,,
    • बीजू धान में निदाई करके या रोपाई के 6-7 दिनों बाद नत्रजन 25 किलो 20-25 दिन बाद
    • कंसे निकलते समय , नत्रजन 40 किलो 50-60 दिन बाद
    • गभोट के प्रारम्भ काल में , नत्रजन 35 किलो 65-75 दिन बाद

    एक वर्ष के अंतर से जिंक सल्फेट 25 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से बुआई या रोपाई के समय प्रयोग करना चाहिए।

    खरपतवार नियंत्रण की रासायनिक विधि (Chemical method of weed control) :-

    1. प्रेटीलाक्लोर 1250 मि.ली. प्रति हे. बुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दर घास कुल के खरपतवार
    2. पाइरोजोसल्फयूरॉन 200 ग्राम प्रति हे. बुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दर चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
    3. बेनसल्फ्युरान मिथाईल.प्रेटीलाक्लोर 6: 10 कि. प्रति हे. बुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दर घास कुल,मौथा कुल तथा चौड़ी पत्ती
    4. बिसपायरिबेक सोडियम 80 मि.ली. प्रति हे. बुआई/रोपाई के 15-20 दिन के अन्दर घास कुल,मौथा कुल तथा चौड़ी पत्ती
    5. 2,4-डी 1000 मि.ली. प्रति हे. बुआई/रोपाई के 25-35 दिन के अन्दर चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
    6. फिनॉक्साप्रॉकप पी ईथाइल 500 मि.ली. प्रति हे. बुआई/रोपाई के 25-35 दिन के अन्दर घास कुल के खरपतवार
    7. क्लोरीम्यूरॉन ईथाइल . मेटसल्फयूरॉन मिथाइल 20 ग्राम प्रति हे. बुआई/रोपाई के 20-25 दिन के अन्दर चौड़ी पत्ती तथा मौथा

    कुलरोग प्रबंधन (Total disease management) :-
    धान की प्रमुख गौण बीमारीयों के नाम, कवक उनके लक्षण, पौधों की अवस्था, जिसमें आक्रमण होता है,निम्नानुसार है
    1. झुलसा रोग (करपा) (Scorching disease) :-
    आक्रमण- पौधे से लेकर दाने बनते तक की अवस्था तक इस रोग का आक्रमण होता है। इस रोग का प्रभाव मुख्य पत्तियों, तने की गाठें, बाली पर आँख के आकार के धब्बे बनते है बीच में राख के रंग के तथा किनारों पर गहरे भूरे या लालीमा लिये होते है। कई धब्बे मिलकर कत्थई सफेद रंग के बडे धब्बे बना लेते हैं, जिससे पौधा झुलस जाता है। गाठो पर या बालियों के आधार पर प्रकोप होने पर पौधा हल्की हवा से ही गाठों पर से तथा बाली के आधर से टूट जाता है।

    नियंत्रण -- स्वच्छ खेती करना आवश्यक है खेत में पड़े पुराने पौध अवषेश को भी नष्ट करें।
    रोग रोधी किस्में का चयन करें-जैसे आदित्य, तुलसी, जया, बाला, पंकज, साबरमती, गरिमा, प्रगति इत्यादि।
    बीजोपचार करें-बीजोपचार ट्रायसायक्लाजोल या कोर्बेन्डाजीम अथवा बोनोमील - 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा से घोल बना कर 6 से 12 घंटे तक बीज को डुबोये, तत्पश्चात छाया में बीज को सुखा कर बोनी करें।
    खडी फसल के रोग के लक्षण दिखाई देने पर ट्रायसायक्लाजोल 1 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति ली. या मेन्कोजेब 3 3 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये।

    2. भूरा धब्बा या पर्णचित्ती रोग (Brown spot or leaf spot disease) :-
    आक्रमण - इस रोग का आक्रमण भी पौध अवस्था से दाने बनने कर अवस्था तके होता है। लक्षण- मूख्य रूप से यह रोग पत्तियों, पर्णछन्द तथा दानों पर आक्रमण करता है पत्तियों पर गोंल अंडाकर, आयताकार छोटे भूरे धब्बे बनते है जिससे पत्तिया झुलस जाती है, तथा पूरा का पूरा पौधा सूखकर मर जाता है। दाने पर भूरे रंग के धब्बे बनते है तथा दाने हल्के रह जाते है।

    नियंत्रण - खेत में पडे पुराने पौध अवषेष को नष्ट करें। कोर्बेन्डाजीम- 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें। खडी फसल पर लक्षण दिखते ही कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें तथा निरोधक जातिया जैसे- आई आर-36 की बुवाई करें।

    3. खैरा रोग (Khaira's disease) :-
    आक्रमण - लक्षणजस्ते की कमी वाले खेत में पौध रोपण के 2 हफ्ते के बाद ही पुरानी पत्तियों के आधार भाग में हल्के पीले रंग के धब्बे बनते है जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं, जिससे पौधा बौना रह जाता है तथा कल्ले कम निकलते है एवं जड़े भी कम बनती है तथा भूरी रंग की हो जाती है।

    नियंत्रण -- खैरा रोग के नियंत्रण के लिये 20-25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर बुवाई पूर्व उपयोग करें। खडी फसल में 1000लीटर पानी में 5किलोग्राम जिंक सल्फेट तथा 2.5किलोग्राम बिना बुझा हुआ चुने के घोल का मिश्रण बनाकर उसमें 2किलो ग्राम यूरिया मिलाकर छिड़काव करने से रोग का निदान तथा फसल की बढ़वार में वृद्धि होती है।

    4. जीवाणु पत्ती झुलसा रोग (Bacterial leaf scorching disease) :-
    लक्षण - इसका अक्रमण बाढ़ की अवस्था में होता है। इस रोग में पौधे की नई अवस्था में नसों के बीच पारदर्शिता लिये हुये लंबी-लंबी धरिया पड़ जाती है।, जो बाद में कत्थई रंग ले लेती है।

    नियंत्रण - बीजोपचार स्ट्रेप्टोसायक्लीन 0.5 ग्राम/किलों बीज की दर से करें।

    5. दाने का कंडवा रोग (लाई फूटना) (Granulation disease) :-
    आक्रमण - दाने बनने की अवस्था में
    लक्षण - बाली के 3-4 दानें में कोयले जैसा काला पाउडर भरा होता है, जो या तो दाने के फट जाने से बाहर दिखाई देता है या बंद रहने पर सामान्यतः दाने जैसा ही रहता है, परन्तु ऐसे दाने देर से पकते है तथा हरे रहते है सूर्य की धूप निकलने से पहले देखने पर संक्रमित दानो का काला चूर्ण स्पष्ट दिखाई देता है।

    नियंत्रण - इस रोग का प्रकोप अब तीव्र हो गया है। अतः बीज उपचार हेतु क्लोरोथानोमिल 2 ग्राम प्रति किलो बीज उपयोग करें। लक्षण दिखते ही प्रभावीत बाली को निकाल दें व क्लोरोथानोमिल 2 ग्राम प्रति ली. की दर से छिड़काव करें है

    कीट प्रबंधन व नियंत्रण (Pest Management and Control) :-

    1. पत्ती लपेटक (लीफ रोलर) (Leaf wrap) :-
    इस कीट की इल्ली हरे रंग की होती है, जो अपनी थूक से पत्ती के दोनो किनारों को आपस में जोड़ देती है। बाद में पत्तियां सूख जाती हैं।

    रासायनिक नियंत्रण :-
    ट्राइजोफॉस 40 ई.सी. प्रोफेनोफॉस 44 ई.सी. + साइपरमेथ्रिन 4 ई.सी. 1 लीटर/है. 750 मिली/है. कीट का प्रकोप होने पर छिड़काव।

    2. तना छेदक (Stem borer) :-
    तना छेदक कीट कल्ले निकलने की अवस्था में पौध पर आक्रमण करता है एवं केन्द्रीय भाग को हानि पहंुचाता है और परिणाम स्वरूप पौधा सूख जाता है।
    रासायनिक नियंत्रण :-
    कार्बोफ्यूरान 3 जी या कार्टेपहाइड्रोक्लोराइड 4 जी 25 किग्रा/है. कीट का प्रकोप होने पर छिड़काव।

    3. भूरा भुदका तथा गंधी बग (Brown Bust and Smell Bug) :-
    ब्राउन प्लांट हापर कीट पौधों के कल्लों के बीच में जमीन की उपरी सतह पर पाये जाते हैं। इनका आक्रमण फसल की दूधिया अवस्था एवं दाने के भराव के समय होता है। इनके रस चूसने के कारण तना सूख जाता है। गंधी वग कीट पौधों के विभिन्न भागों से रस चूसकर हानि पहुंचाता है।

    रासायनिक नियंत्रण :-
    एसिटामिप्रिड 20 प्रतिषत एस.पी. बुफ्रोजिन 25 प्रतिषत एस.पी. 125 किग्रा/है. 750 मिली/है. कीट का प्रकोप होने पर छिड़काव।

    धान की उपज (Paddy yield) :-
    सिंचित /हे. असिंचित/हे.
    50-60 क्वि. 35-45 क्वि.

    आय व्यय का संक्षिप्त ब्यौरा (Brief statement of income expenditure) :-
    औसत उत्पादन 50 क्विं. प्रति हे. होता है और 72500 की आमदानी होती है, जिसका खर्च लगभग 35000 प्रति हे. आता है । इस प्रकार एक हेक्टर में शुद्ध लाभ 37500 /- प्राप्त होता है।


    अधिक उपज प्राप्त करने के लिए प्रमुख  बिन्दु (Key points to achieve higher yield) :-

    • जलवायु परिवर्तन को दृष्टिगत रखते हुए सुनिश्चित सिंचाई वाले क्षेत्रों में धान की जल्दी पकने वाली संकर किस्मों (110-115 दिन में पकने वाली)की बुआई एसआरआई पद्धति से करें।
    • गहरी काली मिट्टी में वर्षा पूर्व धान की सीधी बुआई कतार में करें।
    • शीघ्र पकने वाली किस्में, जे.आर.एच.-5, 8, पी.एस.-6129, दंतेश्वरी, सहभागी, मध्यम समय में पकने वाली किस्में- डब्लू.जी.एल.-32100, पूसा सुगंधा-3, पूसा सुगंधा-5, एम.टी.यू-1010, जे आर 353 ।
    • क्रांति एवं महामाया किस्मों को प्रोत्साहित न किया जावे।
    • बासमती किस्मों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए पूसा बासमती-1121, पूसा बासमती-1509 एवं पूसा बासमती-1460 किस्मों को अधिक क्षेत्र में लगावें।
    • बुवाई कतारों में करें। अतिशीघ्र एवं शीघ्र पकने वाली किस्में को 15×15 से.मी. मध्यम समय में पकने वाली किस्मों को 20×15 से.मी. तथा देर से पकने वाली किस्मों को 25×20 से.मी. की दूरी पर लगायें।
    • बोवाई अथवा रोपाई के 20 दिन बाद नील हरित काई 15 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें।

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